मनुष्य जाति की प्रगति | Manushya Jati Ki Pragati

Manushya Jati Ki Pragati by भगवानदास केला - Bhagwandas Kela

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दो दृष्टिकोश परिवर्तनों को रफ़ार एकसी ही हो। कभी एक तरह 'का-पूरिवर्तेन विशेष रूप से होता है, कभी दूसरी तरह का । फिर ससार के कितने ही हिस्से एक-दूसरे से जुदा और बहुत दूर हैं, एक हिस्से में एक तरह का परि- बर्तन बहुत ज्यादह शेता है, दूसरे हिस्से में बहुत कम । हॉ, अब जैसे- जैसे आमदरफ़ और यातायात की उन्नति और बृद्धि होती जाती है, एक देश मे होनेवाले परिवतंनों का प्रमाव थोड़े-बहुत समय में दुसरे देशों पर पड़े बिना नहीं रहता । इस तरह मनुष्य जाति के व्यवहार ओर रहनसहन आदि में परि- वर्तन होता रहता हैं, यद स्पष्ट है। इसमें मतभेद नहीं | अब सवाल यह है कि इन परिवतेनों से मनुष्य जाति की उन्नति होती है, या अवनति | ध्यान रहे कि मनुष्य जाति, की उन्नति अवनति का निश्चय करने के लिए पाच-दस वषं तो क्‍या एक-दो पीढ़ी का हिसाब लगाना भी काफी नदो ই | मनुष्य जाति को उम्र लाखों वर्ष की है | उसकी उम्र में पचास सौ वर्ष ऐसे ही समभने चाहिएँ, जैसे आदमी की उम्र में एक-दो दिन | हम क्रिसी आदमी की एक दो दिन की हालत देस्व- कर ठीक-ठीक यह नहीं कढ़ सकते कि वह सुधर रही है या बिगड़ रही है। सम्भव है, जिस समय की हालत का हमने विचार किया है, वह समय असाधारण या विशेष प्रकार का रहा हो। उसके आधार पर कोई व्यापक अनुमान करना भ्रमपूर्ण हो सकता है। इसी तरह मनुष्यों की एक-दो पीढियों की हालत का विचार करके मनुष्य जाति की उन्नति-अवनति का ठीक अनुमान नहा लगाया जा सकता | खासकर अपने समय के हालात को देखकर तो बहुत ही कम आदमी निष्पक्ष निय देने मे समर्थं होते हैं। बात यह है कि हमें अपने समय में अकसर कुछ असुविधाएँ, कुछ असनन्‍्तोष और कुछ शिकायतें रहती हैं। हम उनसे प्रभावित होकर मनुष्य जाति की अवनति की बात किया करते हैं! इस तरह दम गम्मीरता पूर्वक्न दूर तक की बात नहीं सोच सकते । हाँ, यह भी सम्भव है कि कुछु आदमी अपने समय के आविष्कारों आदि का बड़ा गये या अमिमान करें और पूव॑जों को




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