वीरविनोद मेवाड़ का इतिहास भाग 2 | Veer Vinod Mewad Ka Etihas Bhag 2

Veer Vinod Mewad Ka Etihas Bhag 2  by श्यामलदास - Shyamaldas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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तवाठतके ठिखना मुनासिव न जाना इन दोनों काग़ूजोंपर कानूगो व चोधरियोंके दस्तखत हिन्दीमें इस तरहपर आड़े ठिखे हुए हैं - दसपत चौधरी रतनसी व चंदर भाण परगने मांडठगढरा - ानेके ठिये लिखा जाता है उसका कुछ नतीजा नहीं निकठता ज्र ड्ढ महाराणा अमरसिंह २. 1 वीरविनोद 1 मेवाडकी घावत एक यादादत -७३३ टरदडसयकसकररससससििससससिसिसिििसििसिसिससससिसिसससससरसििस्ससससससससिसियससिसिसिसिसिसिसससिसिसिसससििसससससससससशिससससकिविसड इसके नीचे २०१ गांवोंकी तफ्सीठवार फिहरिस्त ठिखी हुई है उसको बसबव स फ्ट्रिग ्ि ्ट ११०६ फुस्ठ खुरीफ्में टीड्यारे सबब कुहतसा दे ठी हुईं सो उणी फूसठरा रु० ६७०५ ब्झषरे पेताठीस जमा हुवा परगनारा गांव २० गाम १४ मधघे दाखली बाकी गाम १९५८ बा हुवा. दसषत कानोगो श्रीचंद मज्मुत ऐजून. इजारो स० इसी तरहके दस्तखत दोनों कागुजोंमें हैं और काजी इहसानुछाह व एक बाद- झाही नोकर महमूद दोनोंकी मुह्रें हैं. जब इन महाराणाकी गद्दीनशीनी तक ठेकेका इक्रार पूरा होगया तब बाददाही नोकरोंने फिर यह पर्गने अपने तहतमें ठेने | चाहे. अब उन बाजे अस्ठ कागुजोका तजेमह नीचे ठिखते हैं जो इन महाराणाके वक्तके सिठे और ठिखनेके ठायकू समझे. न १- किसी बादशाही सर्दारकी याददाइत मेवाड़के सुआमले में नानक डटननिाणाा सय्यद अब्दुछाहखांने ठिखा कि पर्गनह बद्नोर च्और मांडठगढ़ जो चित्तोड़ | के जिलेमें है गुजरे इए राणा जयसिंहके बेटे अमरसिंहने बादृशाही हुक्मके मवाफ़िक सुजानसिंहद राठौड़के बेठों करण ओर जुमारसिंहको खाली करके सौंप दिया दाजाअत- खांने भी जो अर्जी बाद्शाही डुक्मके जवावमें लिखी उससे भी माठम होता है कि डूंगरपुरके जागीरदारने चित्तोड़ वगेरहकी वाबत जो कुछ लिखा उसमें कुछ सचाई नहीं हे ओर जुमींदार नामके ठिये मन्सबदार है जिस कृद्र उसको अहमदाबाद दूसरे सदोरकी राय ननाणानिकेटनीावया झजाअतखां और सय्यद अब्दुछाखांके ठिखनेसे अमरसिंहकी तावेदारी जाहिर च भससससससससककससकसससससवथ्रीीर




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