श्री मोक्षमार्ग प्रकाशक | Shri Mokshamarg Prakashak

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Shri Mokshamarg Prakashak by मगनलाल जैन - Maganlal Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सतर्वा अविकार २०४. क, „क ক योग्व 7 = | शुभकों छोड़कर अभुमम प्रवतना योग्य नहीं है ] तथा वह पूजनादि कार्यकों चुभाक्व जानकर हेव मानता है, सो यह सत्य ही है; परन्तु यदि इन कार्योकों छोड़कर चुद् ोपपोगरूप हो तो भला ही है, और विपय- कपायक्प-झथमरूय प्रदसे तो আননা स्वर्गादि हों अयवा कंपायलूप-अशुनब्प प्रवच ता अपना दुरा हा क्रिया । शुनोपबोगसे दि हां अयब कि এসসি नला লান্বলন্বি শা 1 भले निमित्तसे कर्मके स्थिति-अनुभाग घट जायें तो सम्पक्त्वादिकी भी प्राप्ति हो जाये । और अच्चुनोपयोगसे नरक, नियोदादि हों, अथवा दुरी वासनासे या दुरे निमित्तये कर्मके स्थि ति-अनुभाग बंद जायत सम्यकत्वादिक महा दुर्लभ ते जायें । तथा घुनोपयोग होनेसे कपाय मन्द्र होती हैं और अशुभोपयोग होनेसे तीद्न होती है, सो मंदकपायका कार्य छोड़कर तीब्रकृपायक्ा कार्य करना तो ऐसा है जेंसे कड़वी वस्त न खाना और विप साना | सो यह अन्नानता है। फिर वह कहता है--श्वान्तमें शुभ-अद्युनको समान कहा है, इसलिये हमें तो हैं और चुद्धोपयोगको नहीं पहिचानते, उन्हें शुभ-अच्युभ दोनोंको अचुद्धताकी अ्पेला व वंब कारणकी अपेला समान वतलाया है। तथा झुभ-अद्युभका परस्पर विचार करें तो घभभावोंमें कपाय मन्‍्द होती है, इसलिये वंब हीन होता है, अशुनभावेमें कपाय तीत्र होती है इसलिये वंब वहुत होता है ।--इस प्रकार विचार करने पर अश्युभकी अपेक्षा सिद्धान्तमें चुभको भला भी कहा जाता है 1 जैन्न-रोग तो थोड़ा या वहुत बुरा ही है; परन्त बहत रोगकी अपेल्ला थोड़े रोगकों भला भी कहते हैं। इसलिये चुद्घोपयोंग न हो. শি সি तब अणुभसे छूटकर शुभमें সনউল বীন্ন ই, লুলক্ধী दछोड्कर अश्युभमें प्रवर्तेत योन्य उत्तर:--झुभप्रवृत्तिमें उपयोग लगनेसे तथा उसके निमित्तसे विरागता बढ़नेसे कामादिक हींच होते हैं और क्षुवादिकमें भी संक्लेश थोड़ा होता है । इसलिये चुभोप- योयका अस्यास करना । उ्चम क्ररने पर भी यदि कामादिक व क्षुवादिक् पीड़ित करते हैं तो उनके अर्य जिससे थोड़ा पाप लगे वह करना। परल्तु झुमोपयोगकों छोड़कर




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