जवाहर किरणावली गृहस्थ - धर्म भाग - 2 | Javahar Kiranawali Grihasth - Dharm Bhag - 2

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Javahar Kiranawali Grihasth - Dharm Bhag - 2  by जवाहरलालजी महाराज - Jawaharlalji Maharaj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(७) सकी । पूज्य श्री देवलोक पधार गये, सगर सेठ चम्पालालजी सा बांठिया के उत्साह से सम्पादन कायं अग्नसर होता ही चल्ना “गया । बह क्रम मले ही मन्द्‌ पड़ गया है, मगर अव तक चाल है। सेठ सरदारमलजी सा० कांकरिया की साहित्य-भक्ति के फलस्वरूप यह ३२ बीं और ३३ वी किरण प्रकाश में आ रही है। इनके प्रकारित होने से गृहस्थधमं तीन भार्गो मेँ समाप्त हो रहा हे । इन चीनां मागो मे सम्बग्द्शेन, श्रावक के बारह ब्रतों और छह आवश्यकों पर पूज्य श्री के प्रवचन हैं। इनमें से बारह त्रत पहले मंडल की श्रोर से प्रथक्‌ प्रथक्‌ प्रकाशित हुए थे। इस संस्करश में उनमें भी कुछ न्यूनाधिकता की गह है । विस्तारभय से छु कथाएँ कम कर दी गई है । वह कथाएँ पाठकों को उदाहरणमाला' मे मिल जाएँगी । जो कथाएँ अत्यावश्यक प्रतीत हुई, उन्हे रहने भी दिया गया है । इसी प्रकार अहिंसा आदि त्रत सम्बन्धी पूज्य श्री के प्रभांवशाली वचन नये भी सम्मिलित कर दिये गये हैं। आशा है इससे गृहस्थ-बर्म के जिज्ञासुओ को विरोष लाम होगा । गृहस्थधर्म के तीनों भाग पढ़कर पाठक समझ सकेंगे कि श्रावक का कितना दायित्व है, क्रितना कर्तव्य है और क्या गौरव ই? অন प्रवचन श्रावक जीवन का परिपूण चित्र हमारे सासने उपस्थित करते है। जो गृहस्थ ध्यानपूत्रक इन्हे पढ़ें गे, उनके अन्तःकरण में एक बार अवश्य यह प्रश्न उत्पन्न होगा कि--दि्नि-रात साधुओं के आचार की श्रालोचना करने वाले गृहस्थ कितने पानी में हैं ? जो श्रावक चाहते हैँ कि हमारे साधु शास्त्रप्रतिपादित आचार से इंच भर भी इधर- उधर न हो, बे श्रपने विषय मे मी यदी क्यो नहीं सोचते ? इसका अभिप्राय यह नहीं किं दम साधुं से एेसी भाशा न र्खे, मगर हम श्रावकों को भी शास्त्रप्नतिपादित श्रावकाचार का अनुसरण करना चाहिए | तमी हम दूसरो की आलोचना करें तो कदाचित्‌ शोसा दे ।




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