कौशल्य गीतावली | Koushalya Geetawali

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Koushalya Geetawali by शंकर लाल कौशल्य - Shankar Lal Kaushalya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कौशल्य गीतावली । दुख पाय है, सकुचाय दे, चिल्लाय है पछिताय है। करता प्रतिक्षा आज, कल द्वी भूल उस को जाय दै॥ (४) सो जाय पूजा पाठ में, सुख का सदन न सुद्दाय है। हित बात जा इस कानमें, उस कान से उड़ जाय है. ॥ दिन रात गप शप में गंवा, आनन्द जी में मानता । लज्जित हुआ बहुवार, अब निलंज | तज निर्लेजता ॥ ५ है मूखे मन ! कामादि क भांति रखता याद है। माया कपट छल छिद्र, करने में बढ़ा उत्ताद है॥ पट्टी बैंधा के आंख में, कुछ देखता नहिं. भालता। निश दिन बनावे दिन निशा, सत्‌ को असत्‌ कर डालता ॥ ६ हे दुष्ट । तेरा संग मेरे कुछ গাথা नहीं | आती रहीं आपत्तियां, सब संपदा जाती रहीं॥ दिन में सभों के सामने अरू रात को एकांत में। उलदी पढ़ावे पट्टियाँ जिस से नरक हो अन्त में ॥ (७) हे दुष्ट ! तुम सा धृतं भो मेनि कीं देवा नदीं । तेरे खरिख पाईं नदीं विद्या बी करनो कहीं ॥ आश्रय घर का हो तुमे घर को छुटाना द्वी रुचे। भेदी विभीषण हो जहां लंका वहां कैसे बचे ॥ (८) हे चपल अव तेरी सभी चालाकियाँ में जानता ! अब वश न तैरा चल सके में तुच्छ तुमको मानता ॥




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