प्रभु पधारे | Prabhu Padhare
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
208
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पर से पानी के थपेड़ों को भावाऊँे भा रही थों। पानी के थपेड़ों की उस
मार के नीचे बड़े-बड़े जवांमर्द भी दहल उठते थे।
“সার २
हह, शश्टिर } बगल के घर से दूसरे गुजधतियों ने प्रच्श्रता
से नाचते हुए कहा, “यहां की तो यह प्रया ही है। हिंदुस्तानी भी इसमें
शरीक होते हैं। हम दो यावों में रहने पर बिलानागा शरीक हो जाते
हैं । निकालो मोटर ! सारे घहर का चक्कर लगाया जाय ।”
“नही भैया, मोटर तो विगड्ठ जायगी 17
“प्विगड़ जाने दो। मोटर के लीम में शिदरगी का मज़ा क्यो सोते
हो ? हेमकुवर ने हंसकर कहा !
“लेकिन इन लोगों के हाथ के पानी की मार सह नहीं सकोगे,
डॉक्टर ! ' युवक पड़ोसी ने कहा ।
“बस, छुई-मुई-सी भोरतों के हाथ के पानी की मार भी नहीं खा
सकेंगे ! इतना ही है काठियावाड़ियों का पानी ?” हेमछुबर ने व्यग्य
करते हुए कहा ।
“वाद्, यह भी कोई बात हुई ! निकालों मेरी मोटर ।॥” डॉक्टर
नौतम ने जोश में भाकर कहा ।
“लो, चढ़ गया न जोच्य ?” हेमकुवर ने तालिया बजाते हुए कहा ।
उसके हाथ की भूडिया टकराकर खनखना उठी ।
उघर लोगो ने कद्योटे वाघे । टेलीफोन की घटिया बजीं 1 कितनी
ही गुजराती पेढियों में से मोटर भौर मोटर-ट्रक निकल भाई । गुजरातियो
ने भी भाज के राष्ट्रीय उत्सव में भ्रपनी भावाज मिला दी, “नंगो चेवा!
मशो আনা !?
गुजराती युवकों की भी वर्मी युवतियों ने पाती से छूब सबर ली।
उन्हें भ्रच्छी तरह मिगोया! दोपहर तक उत्मव के छुनूस में घूमने हुए
আঁকতে নীম লী হয় জাল का तो एक बार भी खयाल न भाया कि
वह अपने देश से दूर किसी पराये देश में भ्रभी विलकुल नयैन्नये प्राये
हैं । साक होने को भाई 1 वर्मी घरो के सामने बूढ़े स्त्री-पुरध चटाइया
विद्धाकर हाथ-हाथभर लंबी केल के पत्तों छी मुट्ठी हुई धर
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