भरतेश - वैभव भाग - 2 | Bharatesh - Vaibhav Bhag - 2
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12 MB
कुल पष्ठ :
360
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ९४)
यह भी जाने दो (अंसछी बात तो और ही है | तुम्हरे भाई
उद्धत नहीं हैं | मे उनको अच्छी तरह জানলা ছু | वे ठुग्दरे पस
आनके लिये उरते हैं| कण तुझारी गमीरता कोई तामान्य है £
, राजन् | इस जवानीम अगणित संपत्तिको पाकर न्यायनीताकी
मर्यादाऋी रक्षण करनेके लिये तुम ही समर्थ होगये হী | तुम्हारे भाईयोको यह
कहांते आसकता है ? अभीतक उन्होंने उत्तको नहीं सीखा है |
इसलिये वे तम्हारे पातमे आनेके लिये रामीते हैं ।
रान् ! तुम्हारे जितने भी सहोदर है वे अमी छोट है | उनकी
उमर भी कुछ अधिक नहीं है। ऐसी अवस्थामे वे अभो बचपनकों नहा
भूे हैं | इसीलिये ही थे बाहुआलिसे रते नदी, अपितु आप्ते इत ६ै।
बाहुबलिके साथ किसी भी प्रकार अभिषेक व हसी खुर्शाप्त वर्ताव
कर उससे बाहुबली तो प्रसन्न ही होता है । परतु तुम परागल्पनेका
कभी पसंद नही. करगे य॒ वे अच्छौतरह जानते हैं| इसलिये
तुम्हारे सामने नहीं आते है |
वे अपने ही वर्तावसे स्वयं छान्जित है । इसलिये उस नव्म्नाके
मारे तुम्हारे पास नही आते है | अभिमानसे तुम्हारे पास नह्ठी आते है
यह बात नहीं। करू वे अपने आप आकर तुम्हारों सेवा करंगे, आप
चिंता क्यों करते हैं !
मंत्रकि चातुयपूण वचनकों सुनकर चक्रवर्ती मन ही मन হই
व् ठीक है | ठीऊ है | मंत्री | तुम त्रिककुछ ठीक कह रहे हो ! हस प्रकार
फहते हुए बांधवोमे प्रेम संरक्षण भरनेके मंत्रीके: तंत्रके प्रति मनमे ही
नहत प्रन इए ।
इतनेमे मध्यरात्रिका समय होगया था । उस समय “जिनशारण''
शब्द को उच्चारण करते हुए भरतजी वहांते उठे व मंरी और लेश्कोके
साथ शताब्यकी ओर चढे |
उसे समय राजाल्यकी शोभा कुछ ओर थी। अनेक इस वहापर
ष्यव्थित स्यदे श्वे हुए ये ! उतनी उकि) एष्ट चुन कये
वप्र ह गरक ग्न इर ~ |
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