हिंदी काव्य की कलामयी तारिकाएं | Hindi Kavya Ki Kalmia Tarika

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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কাথা { ११ खींचती है । मीरा का हृदय भ्रियतम के वियोग से व्याकुल तो है, किन्तु उसमें शोक और विषाद्‌ के लिये स्थान नहीं । मीरा अपने प्रियतम के विरह में उदास और निराश न होकर उन्माद्‌ के आनन्द मेंनाचती ओर गाती है । दूसरे शब्दों मे यह कहना चाहिये, कि वियोग की वेदना ने उन्हे इतना अंधिक वेदना शील बना दिया है, कि वे मतवाली बन गई है, ओर उनकी सारी वियोग- वेदना श्रानन्द के रूपमे परिणत हो उठी है! सीरा जव इस “आनन्द! को लेकर आगे चलती हैं, तब वे फिर किसी की चिन्ता नहीं करतीं \ वे इसी आनन्द के उन्माद में राज-प्रासाद को छोड़ देती है, विष का प्याला ओठों से लगा लेती है, ओर डाल लेती हैं, सर्पों की गले मे माला । वास्तव मे बात तो यह थी, कि वहाँ मीरा का अस्तित्व दी नदी था । वे आनन्द में इतना विभोर हो उठी थीं, कि उन्हें अस्तित्त्व का ज्ञान ही नही था । वे एक पगली के सश थीं । उन्हें न अपनी चिन्ता थी, और न संसार की ३ संसार की सीमाझों और श्र खलाओं का उनकी दृष्टि में कुछ भी सूल्य नहीं था |वे सब को तोड़ कर अपने प्रियतम के पास जाना चाहती थीं । भ्रियततम की लौ उनके हृदय मे इस प्रकार समाई हई थी, कि उसके समन्त उन्हे ससार मे ऊद दिखाई ही नदीं देता था । मीरा की इस एकाग्रता का चित्र उनके इस पद्‌ मे देखिये ¦ आली रे मेरे नेनन बान पड़ी। चित्त चढ़ी सेरे माधुरी मृरति उर विच आन गड़ी। कब की ठाढ़ी पन्ध लिहारूँ, अपने भवन खड़ी ।॥|




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