एक खली जगह | Ek Kahali Jagah
श्रेणी : काव्य / Poetry
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3.78 MB
कुल पष्ठ :
154
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)तीन महीने बीत गए”
पर खामोशी की लकीर पर पांव रखकर आज फिर वह पैगाम
आया, शायद मुक्ता के विचारों को टटोलता हुआ, गौर यह कहता हुआ
कि बच्चा दीदी के पास रहेगा, पंजाव में, यहां दिल्ली में नहीं ।
मां ने मुक्ता पर गुस्सा करके उसकी खामोशी को तोड़ देना चाहा.
खामोशी छिल-सी गई, मां के शब्दों से खुरच-सी गई, लेकिन टूटी
नहीं कक
मुक्ता के अपने मन में उसकी जीभ जैसे कट गई नहीं
पा रही थी
लगा--कभी नहीं बोला जाएगा, 'हां' कहने के लिए भी नहीं,
नहीं” कहने के लिए भी नहीं
जानती थी--दुनिया की कोई भौरत नहीं होती, जो एक वार
अपने अस्तित्व के पुरे जोर से एक मर्द को भावाज़ देना न चाहती हो
“मैं भी चाहती हूं वह सोचती, पर देखती--आवाज़ भीतर कहीं, गले
से भी नीचे, अटककर खड़ी हो गई है ।
शायद कभी होंठों पर नहीं भाएगी'--वह मन में दिलीप राय को
कल्पना कर देखने लगी, अपना बनाकर, मन के जोर से भी, कानून के
ज़ोर से भी, पर जहां जो कुछ पराया था, वह उसी तरह 2
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