अनाख्या | Aanakhya

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Aanakhya by राय कृष्णदास - Rai Krishnadas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्रीमती ने उनसे ভুলা तो अभी चाय पीने वाले थे १” वे, “आज के बदुछे कछ!” कहकर और अपना देनिस का थपका उठा कर उसे नचाते छुए छम्बे हुए । |! 9० में पु कार कश बोझऊ1-- आज की लुकप्तानी लेते आना फिर पण्डितजी से पूछा--“कहिए, कारबार फैसा चछता ह ? 97 “सब जहाँ-रका-तदों होगया |! “अरे ! यह कैसे १ दुनिया के कायदे से | “अब, इधर केसे आना हुआ १” “छठे भाग्य को खोजते-खोजते ।”” श्रीमती ने कहा-- “करुकत्त जाते होंगे? “हाँ जी |” मैंने पूछा--“यहाँ कहाँ ठहरे हैं ९? “कहीं नहीं | रेल से उतर कर धर्मशाला में असबाब रखता हुआ सीधा इधर चला आया । “क्यों, यहाँ क्‍यों न छाये ९ “उहरना होता तब न। दूसरी गाड़ी से रवाना हो जाऊंगा |”!




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