जैन - ग्रन्थ - संग्रह | Jain - Granth - Sangrah
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
320
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)जैन-प्रन्थ-संप्रद । ५.
१० विशॉलकीर्ति, ११५ बञ्नघर, १२ चन्द्रानन, १३ चन्द्रबाहु;
१४ भुजंगम, १५ ईश्वर, १६ नेमप्रभ ( नमि ), १७ बीरसेन,
१८ महाभद्र, १६ देवथश, २० अन्नितवीयं ।
चौबीस अतीत तीथं ।
१ श्रीनियांण, २ सागर, ३ महासाघु, ४ पिमलप्रभ, ५.
श्रीधर, £ सुदत्त, ७- अप्रलप्रम, ८ उद्धर, ६ अंगिर, १०
खन्मति, ११ सिघुनाथ, १२ कुसुमांजलि, १३ शिवगण, १७
उत्साह, १४ ज्ञानेश्वर, १६ परमेश्वर, १७ विभलेश्वर, १८
यशोधर, १६ रष्णेमति, २० क्ञानमति, २१ शुद्धमति, २२
श्रीमद्र, २३ अचिक्रान्त, २४ .शान्ति ।
चोबीस अनांगत तीर्थकर।
९ श्री महापद्म, २ खुरदेव, ३ सुपाश्वं, ४ स्वयंप्रम, ५
सर्वात्मभूत, ६ श्रीदेव, ७ कूलपुत्रदेव, ८ उदंकदेव, & प्रोष्ठि छ-
देव, १५ जयकीति, ११ मुनिसुव्रत, १२ अर्ह ( अमम), १३
निष्पाप, १४ निश्षाय, १५ विपुर, १६ निम॑ल, १७ चित्रगुप्त,
१८ समाधिगुक्ठ, १६ स्वयंभू, २० अनिवृत्त, २१ जयनाथ, २२
श्रीविमल, २३ देवपाल, २४ मनन्तवीयं ।
बारह चक्रवर्ती ।
१ भरतचक्री, २ सगरचक्री, ३ मघवाचक्रो, ४ सनत्कु-
भारवचक्रो, ५ शान्तिनाथचक्री (ती्थंकर),६ कुन्थुनाथचक्री,(ती-
थेंकुर) ७ अरनाथचक्रो (तोर्थंकर), ८ सभूमचक्रो, ६ पद्मयक्री
था मदापद्य, १० हरिषेणचक्की, ११५ जयचक्री, १२ ब्रह्मदत्तचक्री |
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