परमात्मप्रकाश प्रवचन भाग - 8 | Paramatmaprakash Pravachan Bhag - 8

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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गाधा १५७ ६ द्मप्पा परह श मेलविख मणु मारिवि सहसत्ति। सो वढ जोये किं करट जासु ण एही सत्ति ११५५१ यह आत्मा मनको शीघ्र मारकर, वशत करफे परमात्मा यदि अपनेको नहीं मित्राता तो हे शिष्य ! जिसकी ऐसी शक्ति नहीं है चह योग द्वारा क्या कर सकता है ! मनवों मारना व जीतना, इस मनूके वशपें अपनेको कायर सह बनाना, यह एक बड़ा तप है । जिसे फ्हा है इच्छा- निरोध, इच्छाका रोक देना । सो जो ऐसा नहीं कर सकता उसका योग क्या करेगा अर्थात्‌ व्यावहारिक योग जितनी धामिक क्रियाएँ हैं-- दर्शन, पूजनः स्वाध्याय, ध्यान, प्राणाय,म, एकासन) ओर जितने काम हैं वे सब योग कहलाते हैं। धममंको पानेके लिए जो यत्न किए जाते हैं उन्त यत्तोंका नाम योग है। उन पुरुषोंको योग क्‍या कर सकता है जिनका मन अपने वशमें नहीं है । यद्‌ सनिकल्प आत्मा यदि परमात्मामं नी मिलाया जाता यदा किसी दुसरे परमारंमाको मिलाये जाने की बात नहीं कही है किन्तु यह कद्दा जा रहा है कि यह सबिकल्प रूपसे उपस्थित हुआ निज आत्मा और स्वभाव इृष्टिसे अनादि अनन्त च्रदेतुक विराजमान शुद्ध चैतन्यरवरूप भगवानमें अपनेको नहीं जोडते हैं तो उसका और धार्मिक क्रियाबोंके योग का क्या नफा सिलेगा ! जब तक यह अपनी धुनका पक्का नहीं हो सकता तब तक यह अपने कार्यमें सफल नहीं होता । जीकर करना क्‍या ই?ঘল जुड़ गया ज्ञाखोंका, करोडोका आखिर उससे मिल्लेगा, क्‍या ? मृत्यु होटी अकले ही जायेगा और अबेले दी ससारके सुख दुख भोगेगा। क्या मिलता है यहा किसीके व्यषद्दार करने से, किसीष अनुरागमें प्रेमालापसे अपना समय खो देनेसे इस जीवके हाथ छुछ नही आता है, बल्कि कुछ ही समय बाद जो रागबश समय खोया है उसका इसे पश्चाताप होता है । इस आत्माको अर्थात्‌ सकहप विकल्प 'करनेकी स्थितिमें पड़े हुए इस आत्माकों निधिकह्प परमात्मस्वन्नच्ें ते जाइये तो यद कन्याशका उपाय है। यह परमात्मतत्त्व जो अपने आपसे निरन्त र स्वभावरूपसे बस रहा है बह विशुद्ध ज्ञान दर्शनस्वभाबी है । बहां स्याति, पूजा ज्ञाभ आदिक किसी मी मनोरथमे यह्‌ उपयोग फसा नौ है, विसी मौ विकल्प जाले यह्‌ उपयोग रमा नहीं दै, देसे निशुद्ध ज्ञानार्क दर्शनात्मकं परमात्मामें जिसने अपते आपको महीं क़गाया, योग नहीं किया तब तक कहते हैं कि उ पुरुषके कठिपत योगसे क्या नफा हो सक्ता है १ निया फरतैके लिए प्राणायाम करे, घंटोंकी समाधि लगाये) के রা श




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