बापू | Bapu
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
188
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)क्षणिक-जब निर्णय किया जारहा हो उस घडी के लिए-ही क्यो
न हो, अहिसात्मक हिसा भी कर सकें, जेसे कि बछडेकी हिसा,
पर साधारण मनुष्यके लिए तो वह कम कौए के लिए हसकी नकल
होगी ।इसपर मे दो बातें कहना चाहता हु । बछड़ेकी हिसा जीवन-
मुक्त दशा में की गई हिसाका उदाहरण है ही नहीं । थोडे दिन
पहले सेवाग्राम मं एक पागख सियार आगाया था! उसे मारने
को गाधीजीने आज्ञा देदी थी, ओर वे मारनेदाने कोई अनासक्त
जीवन-मषत नहीं थे। वह आवश्यक और अनिवार्य {हिसा यौ,
जितनी कि कृषि-कार्य में कीटादि की हिसा आवश्यक अं.र अनि-
बाय ॑होजाती हं ! हिसाके भी कई प्रकार हं । बछडकी {हिसा
का दुसरा प्रकार हं! घुडदौडमे जिस घोडेका पैर टूट जातां
हैं या ऐसी चोट लगती है कि जिसका इज ही नहीं है,
और पशुके लिए जीना एक यत्रणा होजाता है, उसे अग्रेंज लोग
मार डालते हे । वे प्रेमसे, अद्वेणसे मारते है, पर वे मरनेवाले
कोई अनासक्त या जीवन-मृबत नहीं होते ॥ जिस हिसाको गीता
से विहित कहा है, वह हिसा अलौक्षिक पुरुष ही कर सकता है--राम,
कृष्ण कर सकते हे । परग्तु राम अर कृष्ण, गाधीजीके अभिप्राय
में, बहा ईब्वरवाचक हैं. । गाधोजी अपनेको जीवन-मुक्त नहीं
मानते और न वह और किसीशो भी सपूर्ण जीवन-मुक्त माननेके
लिए लैयार हे । सपूर्ण जोबन-मुक्त ईश्वर ही हेँ और यह गाधीजी
की दृढ सान््यता है कि “'हत्वाईपि स इयाटलोकान्न हन्ति गिवते
बचन भी ईइवर के लिए हो हैं । इसलिए वह कहते हे--मनुष्य
चाहे जितना बडा क्यो न हो, चाहे जितना शुद्ध क्यों
न हो, ईश्वरका पद नही ले सकता और न व्यापक जनहित के लिए
भी उसे हिसा करनेका अधिकार ह ! इस निर्णयमें से सत्याग्रह
ओर उपवासक उत्पत्ति हुई ।
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