लेखनी उठाने के पूर्व | Lekhani Uthane Ke Purv

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Lekhani Uthane Ke Purv by श्री सत्यजीवन वर्म्मा - Shree Satyjeevan Varmma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ट [ लेखनी उठाने के पूव नहीं कि केवल (सनसनीः की इच्छा से जहां चाहा इस चिह का प्रथोग कर दिया | यदि यह चिह्न सोच-विचार कर काम में नहीं लाया जायगा तो आप की रचना को यह उपहास्य बना देगा और उसकी गम्भीरता ओर महत्व को दलका कर देगा । दूसरा चिह्न प्रश्न-सृचक ( १) है, जिसके विषय में भी सावधान रहना चाहिए। यह देख लेना चाहिए कि हमारे वाक्य का तात्पय प्रश्न से है वा नहीं | यदि है, तो इस चिह्न का प्रयोग उचित है। केवल सम्बोधन करते सभय इसका प्रयोग व्यर्थ है । ऐसे अवसर पर विस्मय सूचक- चिह्न (!) का प्रयोग होना चाहिए। इसके अतिरिक्त हिन्दी में 'डैश! ( -- ) का भी प्रयोग अधिक भात्रा में होने लगा है। 'डैश? या 'लोप-चिद्ट? वहाँ काम मं आता है जहाँ विचारधारा में कोई रुकावथ वा गतिरोध अथवा परिवर्तन उपस्थित दह्वांता है। अरहाँ तक हो लोप-चिह्न ( -- ) का प्रयोग कम करना चाहिए | अधिक प्रयोग से वाक्य के संगठन में शिथिलता आ जाती है । अवतरण-चिह्ों ( “ ? ) का भी प्रयोग उचित रूप से न होने पर रचना की सुन्दरता जाती रहती है । इसी प्रकार साधारण रूप से विराम-चिह्नों के प्रयोग का ःच्छा शान लेखक को पूव॑ ही प्राप्त कर लेना उचित है। संक्षेप में, लेखनी उठाने के पूब, लेखक को लेखन-कला के ये साधारण नियम जान लेना परम आवश्यक है । इसे




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