चिंतामणि भाग 1 | Chintamandi Bhag 1

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Book Image : चिंतामणि भाग 1  - Chintamandi Bhag 1

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Dr. Rajmal bora

hindi books author , assistant professor in 1960 approximately 1970.
completed first ph.d in the  hindi department of  sri venkateswara Andhra pradesh state university, Tirupati.

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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इच्छा जितनी सब कोई या बद्ुतसे लोग एक साथ रख सकते हो! (खोमे कौ स्थितिर्या) पु ७१ वरगकिरण का उदाहूरण : स्थूरुखूपसे श्रद्धा तीन प्रकार की कही जा सकती है। (१) प्रतिभा-सम्बंधिनी, (२) शील- सम्ब- स्थिती ओर (३) साधन-सम्पत्ति-सम्बन्धिनी । (श्रद्धा का बर्गी- करण) प्‌ २२. आदि आदि । मनों विकारों के विकल्प, उनकी स्थितियाँ या दशाएं, उनके विभिन्‍न रूप. एवं उनको वर्गक्कित करते समय मनोविकार की किसी स्थिति को छोड दिया गया है, ऐसा प्रतीत नहीं होता। इस सारे विवेचन मे विषय के विस्तार को व्यापक स्तर प्रदान किया गया हें। इस विवेचन में आचाये शुक्ल का प्रखर ज्ञान व्यक्त हुजा ह । मनोविज्ञान या समाज-मनोविन्नन का जानकार भो इनका विरोध नहीं कर सकेगा। यह इसलिए कि मतोविकार को सामान्य मानकर उनका वेज्ञानिक विवेचन विषयानसार प्रस्तुत किया गया हैं। अपने कथत के उपयुक्त शुक्ल्जी ने उदाहूरण भी दिए ह। मनोविकार ओर साहित्य ल्पा छः कर कग] পাশ স্পা गे शर्त में अपूर्व विश्वास है! भावक्षत्र अर्थात मनोविकारों का क्षेत्र (शुक्लूजी के ही शब्दों में। पवित्र हु और इस क्षेत्र की प्रचित्रता बनाए रखने के लिए कविता की आवश्यकता है। आचाये शक्‍लरू आलोचक हें और आलोचक की सवेदना विकसित होती दहं । इस नाते से शुक्छनो ने अपनी विकसित सवेदना का परिचय दिया भी है। इन निबन्धों में उन्होंने अपनी रसानभूति का बौद्धिक विद्रेषण किंथा हे । इस बौद्धिक विश्लेषण में उनकी दृष्ठि मूछतः कविता पर रही है । एक मनोवेज्ञानिके (९5०10105) इन मनोविक्रारयौ का अध्ययन प्रस्तुत करते समय हस बात का ध्यान रखेगा कि मनोजिकारो ” को कंसे पहुचाना जा सकता हैँ ? वह यह भी देखेंगा कि इनकी अभिव्यक्ति कैसे होती हैं ” इन को पहचान कर ही वह ' मन ' का विद्लेषण कर सकेगा । मानसिक समस्याओं को पहचानने के छिए एव उनका निदान प्रस्तुत करने के छिए मनोव॑ज्ञानिक इन मनोंविकारों का अध्ययन करेगा। आचाय॑े शुक्क को उद्देश्य इस प्रकार का हैँ ऐस! प्रतीत नहीं होता | इसी तरह समाजशास्त्री की तरह वे सनोविकारों का अध्ययन नहीं करते । यह स्पष्ट हैँ कि उसका यह अध्ययन एव तदनृसार लेखन काव्यशास्त्र के आचार्य होने के नाते है | कुमंगोग, ज्ञानयोग के सदृश वे भावयोग को मानते हैं और भावयोग की साधना काव्य साधना सनोविकारों का मूल्यांकन ११




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