जूनिया ग्राम्य जीवन - संबंधी सचित्र उपन्यास | Juniya Gramya Jivan - Sambandhi Sachitr Upanyas
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
274
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about गोविंद वल्लभ पंत - Govind Vallabh Pant
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्य छूनिया
दे रक्ी है, ओर हमें इनका जूठा खानाहोगा | श्रधेरकी हद
हदो गई!
स्वामी के पीठ किराते दीपिता ने दाथ रोक लिया, ओर माता
वीच में पढ़कर बेटे को मकान के अंदर ले गई, तथा उसे कुछ
गुड़ देकर शांत किया
उस दिन से जूनिया ने ग़ुसाइंजी के मकान की दिशा ही
छोड़ दी |
जूनिया के मकान से दो मील ऊपर दो गाड़ी की सढ़के एक
दूसरी को काठती हैं। यात्रियों की सुविधा के लिये वहाँ अनेक
दूकाने है । उस स्थान का नाम चोमुखिया प्रसिद्ध है। चोमुखियां
में जूनिया की बिरादरी का एक बढ़ई रहता था। वह चीढ़ की
नरम लकड़ी को छील-छालकर मकान के चोखटे-दरवाज्ञे बना
लेता था | बेंलगाड़ियों के पहिए भी जोढ़ता था। वह लोहे का
काम भी करता था । बैलों के नाल बनाकर ठोकता ओर बेलगाड़ियों
के पहियों में लोहे का घेरा भी पहनाता था।
जूनिया उस बढ़ई की दुकान तक कभी-कमी दो आता था। जब
जूनिया उसे गरम लोहा पीटते देखता, तब वह उड़ती हुईं चिन-
गारियों में श्रपने जीवन के स्वप्न निहारने लगता । पिता से पिटकर
जब जूनिया के मन में स्वामी का विद्रोह पनपने लगा, तो वह खेती
का काम छोड़ रोज्ञ उस बढ़ई की दूकान पर काम सीखने जाने
लगा । शाम को घर आता, और सुबह खा-पीकर दस बजे तक वहाँ
पहुँच जाता । ।
बढ़ई की दुकान पर जाते-जाते उषे छं महीने हो गए, प्र
मज़दूरी के नाम पर उसने कभी एक पाई भी नहीं पाई थी।
बढुई उससे यही कहता था--“'एक तख्ता सीधा नहीं चीर सकते,
হন্দ कील. सीधी नहीं ठोक सकते | मेरी दो आरियों के दाँत-तोढ़
User Reviews
No Reviews | Add Yours...