नानेश वाणी नव निधान | Nanesh Vani Nav Nidhan

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Nanesh Vani Nav Nidhan by आचार्य श्री नानेश - Acharya Shri Nanesh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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नव निधान /11 मेरे पतिदेव कहीं जग न जाए। यद्यपि आई शी दिल के विचार सुनाने के लिए फिर भी उसमे विवेक था किं महाराजा की सुख-निन्द्रा भग न करू | स्वाभाविक रूप से निद्रा भग हो तब मे अपनी बात रखू | वह खट-खट करके हाथ लगाकर या आहट करकं निद्रा भग करने की भावना नहीं रखती है । आज के भाई-बहिनो मे इस प्रकार का विवेक है या नहीं ? आज की स्थिति बडी विचित्र हे। कोई सोया हे, उसका ध्यान न रखकर भाई-बहन धडा-धड चलेगे, जोर-जोर से बोलेगे, पर यह नहीं सोचते कि मैं इन्हे किस कारण और क्‍यों जगा रहा हूँ ? हा, कोई अति आवश्यक कार्य हो और उसके लिए जगाना पडे तो अलग बात है पर बिना विवेक के इस प्रकार का कार्य करना ठीक नहीं | महारानी विवेक वाली थी, स्थिति समझने वाली थी | नय-ननिक्षेप का यतकिचित्‌ उसे ज्ञान था। वह शान्ति के साथ वहा जाकर बैठ जाती हैं वह महाराजा के सिहासन पर बैठने की चेष्टा नहीं कर रही थी। महाराज स्वय भी इतनी गाढ निद्रा वाले नहीं थे। किसी-किसी व्यक्ति को नींद ऐसी आती है कि नगाड भी पीटे तो नींद नहीं खुले। पर महाराजा मामूली सी आहट से जग गये। बोले-कौन ? महारानी बोली-नाथ, यह आपकी धर्मप्रिया | कहो-कैसे आना हुआ ? नाथ । कुछ विशिष्ट कार्य के लिए आई हूँ। महाराज ने उसे बैठने के लिए आसन दिया। यह स्थिति गृहस्थाश्रम की है। उनके विचारों की व जीवन की स्थिति किस प्रकार की है, यह भी आप समझिये। वे एक आसन पर बैठना भी पसन्द नहीं करते थे। महाराज ने स्वस्थ होने के बाद पूछा-तबियत तो ठीक है ना 2 हा महाराज, तबियत तो ठीक है, मैं कुछ विचार रखने आई हूँ। महारानी ने कहा-मैंने शय्या मे सोते हुए एक श्वेतवर्ण हाथी को देखा और वह हाथी राजभवन मे प्रवेश करते हुए मेरे पास आकर बैठ गया। इतने में मेरी नींद भग हो गई। इस स्वप्न का क्या अर्थ है ? यही समझने मैं यहा उपस्थित हुई हूँ। महाराज भी 72 कलाओं के जानकार थे। उन्होनें कहा-जिन्दगी




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