नानेश वाणी प्रवचन पीयूष | Nanesh Vani Pravachan - Piyush

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Nanesh Vani Pravachan - Piyush by आचार्य श्री नानेश - Acharya Shri Nanesh

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about आचार्य श्री नानेश - Acharya Shri Nanesh

Add Infomation AboutAcharya Shri Nanesh

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
प्रवचन-धीयुल ८11 ' पुरत्थिमाओ वा दिसाओ आगओ अहमसि | , ˆ दाहिणोओ वा दिसाओ आगओं अहमसि' || न एवमेगेसि णो णाय मवई ` ज्ञानावरणीय कर्म से जिस आत्मा पर सघन पर्दा पडा हुआ है, वह जीव यह ' नहीं जानता कि भँ पूर्वभव मे किस' गति मेँ.था ओर 'यहा पर कहा से आया हु? यह आत्मा क्या कभी इस बात का चिन्तन करती है कि वह पूर्व दिशा से आई है या पश्चिम दिशा से अथवा उत्तर दिशा से आई है या दक्षिण दिशा 'सै? दिशा सम्बन्धी इतना-सा ज्ञान भी इस आत्मा को नही है। शास्त्रो मे इन स्थूल दिशाओ का ही उल्लेख नही है बल्कि प्रज्ञा एव भाव-दिशाओ का भी उल्लेख है तथो आत्मा कं सदर्भं मे भाव-दिशाओः का ही विचार किया जाता है| जब भाव-दिशाओ की दृष्टि से चिन्तन किया जाता है, तब ज्ञान की गहराइया प्राप्त होती हैं। ' * * आत्मचिन्तन से ज्ञान-लाम | ` आत्मा के लिये भाव-दिशाए इस प्रकार हैँ कि वह किस योनि से आई है? वह पानी, पृथ्वी, अग्नि या वनस्पति से आई है अथवा अन्य योनि से? भाव-दिशाओ के सम्बन्ध मँ आत्मचिन्तन चलता है, तब विचारधारा उठती है कि एसी-एेसी योनियो से निकल कर आत्मा को जो यह मनुष्य जीवन मिला है, वह मोक्षप्राप्ति के लिये कर्मभूमि है । इस जीवन मे आत्मा अपने पुरुषार्थ दवारा ज्ञानावरणीय आदिकर्म को क्षीण करते हुए ज्ञान-दर्शन एव चारित्र की सफल अराधना कर सकती है | । ' यह आत्मचिन्तन जितनी गहराई तक पहुचेगा. उतना ही ज्ञान-लाभ इस आत्मा को होता जाएगा | मानव जीवन की कर्मभूमि मे आकर यह आत्मा मोक्ष की करणी कर सकती है, तीर्थकरं गोत्र बाघ सकती है तथा चक्रवर्ती बनने की पृष्ठभूमि तैयार कर सकती है । असि, मसि एव कषि के क्षेत्रो मे सफलता प्राप्त करती हुई यह आत्मा उग्र धर्म करणी का प्रसग भी उपस्थित कर सकती है । ২ মি आत्मशक्ति की इस गूढता को सबसे पहले जानने 'की आवश्यकता है ओर यह जानना ही मनुष्य `को+कंरने की दिशा में प्ररत कर सकेगा। मो्ष-मार्गं के तीन साधनो मे इसी दृष्टिं से ज्ञान एव दर्शन को चारित्र से पहले स्थान दिया गया ह । जानो, मानो एव करो- ये तीनं अंगे ह ओर इनके साथ सम्यक्‌ शब्द जुडा हुआ है । सच्चा ज्ञानः ही सच्ची श्रद्धा एवं सच्चे आचरण का कारणभूत बन सकेगा। सच्चे ज्ञानं की प्राप्ति के बाह्य साधन




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now