धर्माभ्युदय महाकाव्य | Dharmabyudaya Mahakavya

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Dharmabyudaya Mahakavya  by गुरु श्री चतुरविजय - Guru Shree Chaturvijaya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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{१२ सिंधी जैन ग्रन्थमाला ছজে ज॑ बधायों हतो अने तेनीं तेओ इं्रेजी उपरांत, बंगाली, हिंदी, गुजराती भाषाओं पण खूब सरस जाणता हता शते ए সাখাজীমা लखाएज पितिध पुसकोना वाचनमों सतत निमम्त रहेता हता, नानपणथी ज तेमने प्राचीन वस्तुओना संग्रहनो भारे शोख जागी गयो हतो अने तेथी तेओ जूना सिक्काओ, चित्रो, मूर्तिओ अने तेवी वीजी बीजी चीजोनो संप्रह करवाना अत्यंत रसिक थई गया हता. झवेरातनों पण ते साथे तेमनो शोख खूब वच्यों हतो अने तेथी तेओ € নিঘযমাঁ पण खूब ज निष्णात थई गया हता. एना परिणामे तेमणे पोतानी पासे सिक्षाओं, शिन्नो, हस्तलिखित बहुमूल्य पुस्तकों बिगेरेनो जे अमूल्य संग्रह भेगो कर्यों हतो ते आजे हिदुस्थानना गण्वागात्या एवा संभ- होमाँ एक महत्त्वनुं स्थान प्राप्त करे तेवो छे. तेमनों प्राचीन सिक्षाओनो संग्रह तो एटलो बधो विशिष्ट प्रकारनों छे के जेथी জান্ধী শুনিখানা तेजुं भी के चोथु स्थान आवे तेम छे. तेओ ए विषयमां एटला निधुण थई गया हता के म्हौठा म्होटा म्युजियमोना क्युरेटरो पण वारैयार तेमनी सलाह अने अभिप्राय मेल्ववा अर्थ तेमबी पासे आवता जता, तेओ पोताना एवा उच्च सांस्कृतिक शोखने लने देरा-विदेशनी आवी सांस्कारिक प्रशृ्ियो माटे कायं करती अनेक संस्थाओना सदस्य बिगेरे बन्था हता. दाखला तरीके - रीयर एशियाटिक सोसायरी ओंफ बेगाल, अमेरिकन ज्योप्राफिकल सोसायटी न्यु्योक, बंगीय साहित्यपरिषद्‌ कलकत्ता, न्युमिखेरिक सोसायटी ओफ इन्डिया बिगेरे अनेक प्रसिद्ध संस्थाओना तेभो उस्साही सभासद्‌ इता. साहित्य अने शिक्षण विषयक प्रबृत्ति करनारी जेन तेम ज जनेतर अनेक संस्थाओने तेमणे मुक मने दान आपी ए विषयोना प्रसारमां पोतानी उत्कट अभिरचिनो उन्म परिचय आप्यो हतो, तेमणे आवी रीते केट-केटटी संस्थाने आर्थिक सदायता आपी इती तेनी संपूर्णं यादी मठी शहकी नथी. तेमनो खभाव आवां कार्योमां पोताना पिताना जवो ज प्रायः मौन धारण करवानो हतो अने ए मटे पोतानी प्रसिद्धि करवानी तेओ आकांक्षा न्होता राखता., तेमनी साथे कोई फोई वखते प्रसंगोचित वार्तालाप थतां आवी बाबतनी जे आडकतरी माहिती मदी शषकी तेना आधारे वेमनी पासी भा्थिक सहायता मेकवनारी केटलीक संस्थाभोनां नामो विगेरे आं प्रमाणे जाणी शकायां ठैः ~ हिंदु एकेडेमी, दोलतपुर ( बंगाल ), ० १५००० कलकत्ता-मुर्शिदाबादना जैन मन्दिरों, ११०० ०) तरकी उर्दू बंगाला, ५०००) जैनधर्म प्रचारक सभा, मानभूम, ५०० ०) हिंदी साहित्य परिषद्‌ भवन (इलाहाबाद ), १२५००). जैन भवन, कलकत्ता, १५०००) विज्ञुद्धानंद सरखती मारवाडी द्वॉस्पीटठ, कलकत्ता, १००००) जैन पुस्तक प्रचारक मंडल, आगरा, ७५० =) एक मेटर्निटीहोम, कलकत्ता, २५००) जैन मन्दिर, आगरा, ३५००) बनारस हिंदु युनिवर्सिटी, २५००) जेन हाईस्कूल, अंबाला, २१००) जीयागंज हवायस्कूल, ७५००० जेन गुरकुछ, पाठीताणा, ११०००] জীবানজ ठंडन मिरान होस्पीटल, ६०००} जेन प्राकृत कोरा माटे, २५००) ए उपरांत हजार -द जार पांचसो -पांचसोनी नानी रकमो तो तेमणे संकडोनी संल्यामां आपी छे जेनो सरागो दोढ बे लाख जेटलो थवा जाय. सादि अने शिक्षणनी प्रगति माटे सिंधीजीनो जेरत्मरे उस्वाह भने उद्योग हतो ठेटखो ज सामाजि प्रगति मठे पण ते हतो, अनेकवार तेमणे भवी सामाजिक सभाभो विगेरेमां प्रमुख तरीके भाग लने पोतानो ए विषेनो आन्तरिक उत्साह अने सहकारभाव प्रदर्शित कथो तो. जेन श्ेतांबर केन्फिरन्सना सन्‌ १९२६ मां मुंबश्मां भराएत्म सखाश्च भविकेशनना तेओ प्रमुख बन्या हता. उदयपुर राज्यमां भावेला केसरीयाजी वीर्थना वदहीवटना बिषयमां स्टेट साये ज्ञे श्षषंडो उभो थयो हतो तेमां तेमणे सीथी वधारे तन, मन अने धननो मोग शाप्यो हतो. आ रीते तेभ जैन बअरभाजना हितनी भद. तियोमां यथायोग्य संपूरणं सहयोग आपता इता परंतु ते साये वेभो सामाजिष मूढता अने सांप्रदायिक कटरताना पण पूर्ण निरोधी हता. वीजा वीजा घनवानो के आगेवानो गणाता रूढीभक्त जैनाँनी माफक, तेओ संकी्ण मनोबृति के अन्धश्रदधा- पोषक विकृत भक्तिथी सर्वथा पर्‌ हता. आचार, विचार ङे व्यवहारमां वेओ बहु ज उदार अने बिवेकष्रील हता, वेम गृहस्थ तरीके जीवन परण बहू ज सादुं धने सात्विक हतुं. बंगालना जे जातना नवा गणाशा वातावरणं वेओ जन्म्या इता अने उछया हता ते वातावरणनी ठेमना जौषन उपर क्री ज सरा अघर अह न दौ भने तशो लभं हूं बाताबरणबी तहन अछिप्त जेबा हता, आटला म्दोठा श्रीमाद्‌ होवा छतां, श्रीमंताईना खोटा निझास के निध्या भार्यरणी तेओ सदा दूर रहेता दत्ता, दुव्भय अने दुब्येसन प्रत्े तेमनो भारे तिरस्कार हसो, सेभनी स्थितिना धनकानों ज्वारे फेसामां मोज-सोल, जानन्दजमीद, मिजस-पबास, समारंभ-महोत्सव इत्यादिमां लाखे रुपिया उडापता होय के खोरे सिधीजी




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