श्रम - दान | Shram Daan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
78
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about धीरेन्द्र मजूमदार - Dheerendra Majoomdar
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)खम-दान की योजना १९
सरकार ने थोडे हो दी हैं। जमीन तो लोगो ने दी हूँ । वोने के
वास्ते एक आये ओर काटने के वस्ते दूसरा आये, यह् नही हुमा
करता। जो बोयेगा वही काटेगा । इस तरह हम जमीन का वंट-
वारा और उसके साथ ग्रामोद्योग और नयी तालोम, सब चलाना
चाहते है ।
तालीम के लिए हम सरकार पर भरोसा नहीं रखना
चाहते । सरकार स्कूल खोलतो है तो उसमे वहुत पसा खर्चे
होता हैं । लेकिन हम तो हर गाँव में बिना पैसे का स्कूल खोलना
चाहते हे । वह् एक घटे का स्कूल होगा। गाँव का कोई भी पढा-
लिखा मनुष्य हर रोज एक घटा पढायेगा । उसके लिए उसको
तनख्वाह नहीं दी जायगी । उसे साल भर में थोडा-सा अनाज
दिया जायगा । वह दिन भर भपना धधा करेगा भौर सिर्फ एक
घटा पढायेगा। वैसे ही अगर गाँववाले चाहते है कि गाँव मे पोर्ट-
आफिस खुले तो सुर सकता हैँ । गाँव के ही किसी एक वच्चे को
तेयार करके डाक लाने के लिए पोस्ट-आफिस के गाँव तक भेजा
जाय तो गाँव में हर रोज डाक आ सकती हूँ। उसी तरह गाँववाले
ही अपना दवाखाना गाँव में खोल सकते हे । औपधि के लिए
पैसा परदेण भेजना गलत है । हम चाहते हे कि गाँववाले मिलकर
गावि मे एक छोटा-सा वनस्पति का वगीचा लगाये ओर वनस्पत्ति
कात्ताजा रस वीमारो को दे । यह सबसे बेहतर तरीका हूँ ।
वाहर की छह-सात महीने को पुरानी दवाइयां जीर्णं-थीर्ण होती है ।
उसी तरह खाद के लिए भी गढे वनाये जाँय और मनप्य के मल-मूत्र
वे खाद वनाया जाय । इस तरह गाँववाले अपनी ताकत से
सब कुछ कर सउते है। वे क्या नही कर सकते, यही सवाल पूछा
जा सकता है ।
User Reviews
No Reviews | Add Yours...