श्रम - दान | Shram Daan

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Shram Daan by धीरेन्द्र मजूमदार - Dheerendra Majoomdar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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खम-दान की योजना १९ सरकार ने थोडे हो दी हैं। जमीन तो लोगो ने दी हूँ । वोने के वास्ते एक आये ओर काटने के वस्ते दूसरा आये, यह्‌ नही हुमा करता। जो बोयेगा वही काटेगा । इस तरह हम जमीन का वंट- वारा और उसके साथ ग्रामोद्योग और नयी तालोम, सब चलाना चाहते है । तालीम के लिए हम सरकार पर भरोसा नहीं रखना चाहते । सरकार स्कूल खोलतो है तो उसमे वहुत पसा खर्चे होता हैं । लेकिन हम तो हर गाँव में बिना पैसे का स्कूल खोलना चाहते हे । वह्‌ एक घटे का स्कूल होगा। गाँव का कोई भी पढा- लिखा मनुष्य हर रोज एक घटा पढायेगा । उसके लिए उसको तनख्वाह नहीं दी जायगी । उसे साल भर में थोडा-सा अनाज दिया जायगा । वह दिन भर भपना धधा करेगा भौर सिर्फ एक घटा पढायेगा। वैसे ही अगर गाँववाले चाहते है कि गाँव मे पोर्ट- आफिस खुले तो सुर सकता हैँ । गाँव के ही किसी एक वच्चे को तेयार करके डाक लाने के लिए पोस्ट-आफिस के गाँव तक भेजा जाय तो गाँव में हर रोज डाक आ सकती हूँ। उसी तरह गाँववाले ही अपना दवाखाना गाँव में खोल सकते हे । औपधि के लिए पैसा परदेण भेजना गलत है । हम चाहते हे कि गाँववाले मिलकर गावि मे एक छोटा-सा वनस्पति का वगीचा लगाये ओर वनस्पत्ति कात्ताजा रस वीमारो को दे । यह सबसे बेहतर तरीका हूँ । वाहर की छह-सात महीने को पुरानी दवाइयां जीर्णं-थीर्ण होती है । उसी तरह खाद के लिए भी गढे वनाये जाँय और मनप्य के मल-मूत्र वे खाद वनाया जाय । इस तरह गाँववाले अपनी ताकत से सब कुछ कर सउते है। वे क्या नही कर सकते, यही सवाल पूछा जा सकता है ।




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