भारतीय दर्शन का इतिहास भाग - 3 | Bhartiya Darshan Ka Itihas Bhag - 3
श्रेणी : इतिहास / History, साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
19.25 MB
कुल पष्ठ :
470
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
ए. यू. बसाबडा - A. U. Basaabadaa
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डॉ एम्. एन. दासगुप्त - Dr. M. N. Dasgupt
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)थ [ मारतीय दर्शन का इतिहास
झन्य विषयों के ज्ञान के सबधघ मे ही उन की उपस्थित पर वह निर्भर है ।* जीव का
स्थान हृदय मे है श्र हृदय के चर्म द्वारा वह सारे देह के सम्पर्क मे रहता है । यद्यपि
वह बन्घनयुक्त है, अविद्या इत्यादि से प्रभावित है श्रौर झणुरूप है, तो. मी श्रततोगत्वा
वह श्रणुरूप नही है क्योकि वह ब्रह्म से श्रमिन्न है । बुद्धि, श्रहकार, पच इद्रियाँ श्रौर
पच प्राख से प्रभावित होकर जीव पुन्जन्म के चक्र मे फेसता है। श्रणुरूप होना
ध्ौर बुद्धि इत्यादि के सम्पके मे रहना जीव का स्वभाव नहीं हैं किन्तु जहाँ तक वह
सम्बंध विद्यमान है वहा तक, जीव के कतू त्व पूर्णतया सत्य है, किन्तु इन कतृंत्व का
मूल, भ्रत में ईइवर स्वय ही है। ईदवर हो हम से सारे कम कराता है, वहीं हम से
सत्कमें कराता है श्रौर हमारे अतर मे रहता हुआ हमारे सारे कर्मों का नियनण भी
करता है ।
मवुष्य को प्रत्येक झाश्रम मे शास्त्रोक्त कम करना चाहिये, वह कभी भी उस
अवस्था पर नही पहुच सकता जहा वह शास्त्रोक्त कर्म के बघन से ऊपर उठ जाता
हो ।* श्रत शकराचार्ये का यह कथन ठीक नहीं है कि उच्च ज्ञान का अधिकारी
जीवन के धर्म तथा शास्त्रोक्त कर्म झर झ्राचार से परे है या जिन लोगों के वास्ते
शास्त्रो मे जो कर्मकाड निर्दिष्ट किये गये वे उच्च ज्ञान के अधिकारी नही हैं ।. दूसरे
दाब्दो मे शकराचायें का यह कथन कि कर्म श्रौर ज्ञान से कही भी समुच्चय नही है यह
भसत्य है। भास्कराचायें यह श्रवष्य मानते हैं कि नित्य नैमित्तिक कर्म, ब्रह्म को परम
सत्य का दर्शन नही करा सकते, तो भी ज्ञान-समुच्चित कर्म परम श्रेय, ब्रह्म ज्ञान की
प्राप्ति करा सकते हैं। ब्रह्म ज्ञान की प्राप्ति हमारा धमें है। हम शास्त्र के
भादेशानुसार ही इसे स्वीकारते हैं क्योकि शास्त्र यहा पर हमे विधि देता है, झ्रात्मा
जानने योग्य है इत्यादि (श्रात्मा था झरे दृष्टव्य ), इसलिये शकराचार्ये का यह कथन
ठीक नही है कि शास्त्रोक्त नित्य नैमित्तिक कमें हमे श्रघिक से श्रघिक पापरहित बनाकर
१ बही रे-रे-१८, २२, २३ ।
* भास्कर भाष्य, १-१--१ ।
बहा सूत्र, एक झ्रथें मे मीमासा सूबर से ग्रथित है जिसका अ्रबुकरण करना झावश्यक
है, क्योकि कमेंकाण्ड का पालन करने के पइचात् ही ब्रह्म-जान उत्पन्न हो सकता है,
इसलिये म्रह्म-ज्ञान कमेंकाण्ड की श्रावइयकता हटा नहीं सकता, तथा ब्रह्म सूत्र कोई
उच्च तथा सिन्न लोगो के ही लिये है इस विचार को सात्य रखते हुए भास्कर
उपवष या उपवर्पाचाये का भझ्नुसरण करते हैं तथा उन्हीं की मीमासा-सूत्र की
टीका का उल्लेख करते हैं तथा उन्हें इस प्रशाली के सस्थापक कहते हैं 1
वही रैन१-१ तथा र-र-र७ श्र भी देखो १-१-४ । श्रात्म ज्ञानाधघि-
कतसथ कर्म मिविनापवर्गानुपपत्ते ज्ञानेन कं समुच्चीयते ।
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