श्रीमन्त्रराजगुणकल्पमहोदधि | Shrimantrarajgunkalpmahodadhi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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विपयानुक्राणिफा । ८११४ न~ ~~~ ~~~ विपय पृष्ठ ते ঘুন্তনন্ষ, चारों शुक्त ध्यानों के अधिकारी * 7 হি निश्च भंग षो ध्यानच्त्क = न , + श जन्य योगी-ध्रयान-हैतु जा ক ৯ १२२ 7 धथम शुष्क घ्वान का आलम्बन “ˆ ४ শি शर अन्तिम ভী মালা के अधिकारी ~ नह» ००० १२२ योग से योगान्तरः म गमनः ~ ~ ~ १२३ संक्रमण तथा व्याति = = * == १२३ पूणोस्यास्ती योगी कै गुण *** 2 নন চিল १२३ सविचार से युक्त एकव ध्यान का स्वरूप ˆ“ ` १२३ मन का अणु मैं खापव.. ० ““ “ “श मनः स्थेयं का फल, === = = = ~ হই ध्यानाग्नि के प्रडबलित होने पर योगीन्द्र की फल प्राप्ति तथा उसका महुष्टव १ নি? ५ १ ११ १२६ कर्मो की अधिकता होने पर योगी को ससुदुघात करने की आवश्यकता ~ ~ শি পা হহ दरडादि का. विधानं श्वरः , ॐ _ अजब... मेड... शरद द्रडादि. चिधानके पश्चाच्‌ ध्यान विधि तथा उस्र काप १२६ १२७ अनुभव सिद्ध निर्म त्वक्ना वणेन -*“ “2 **+ . १२७ चित्त के चिक्षिप्त आदि चार भेद तथा उन का खरूप ˆ . १२७ निरालस्थ उयान खेचन का उपदेश व्‌ उस को विधि“ १२८ चदिरात्मा च अन्तरीत्माक्ताखरूप * ˆ“ ““ १९८ परमात्माका खूप. ˆ ~ ^ ~ ~ १२८ योगी का. कर्तव्य না द ~ „~ १६८ यात्सध्यान का फलि = = = ` १२८ तत्त्वज्ञान प्रकट होने का हेतु... “*“ ` ` १२८ ६ णुरुसेचन की आज्ञा == च তি = ` १२६ হাফ-লহিলা ` তা = 7 পাত তি १२६ নি মা জীভাজীলঘ জ্ধহলা' - ৭ 7 7 ইহ सद्भुदप तथा कामना कात्याय.. ५ ৩ তা १२६ क्षौदासीन्य মহিমা = ११, १०6 #कंजाह | के ^ १२६ |




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