श्रीमन्त्रराजगुणकल्पमहोदधि | Shrimantrarajgunkalpmahodadhi
श्रेणी : धार्मिक / Religious, साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
15 MB
कुल पष्ठ :
294
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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चारों शुक्त ध्यानों के अधिकारी * 7 হি
निश्च भंग षो ध्यानच्त्क = न , + श
जन्य योगी-ध्रयान-हैतु जा ক ৯ १२२ 7
धथम शुष्क घ्वान का आलम्बन “ˆ ४ শি शर
अन्तिम ভী মালা के अधिकारी ~ नह» ००० १२२
योग से योगान्तरः म गमनः ~ ~ ~ १२३
संक्रमण तथा व्याति = = * == १२३
पूणोस्यास्ती योगी कै गुण *** 2 নন চিল १२३
सविचार से युक्त एकव ध्यान का स्वरूप ˆ“ ` १२३
मन का अणु मैं खापव.. ० ““ “ “श
मनः स्थेयं का फल, === = = = ~ হই
ध्यानाग्नि के प्रडबलित होने पर योगीन्द्र की फल प्राप्ति तथा
उसका महुष्टव १ নি? ५ १ ११ १२६
कर्मो की अधिकता होने पर योगी को ससुदुघात करने की
आवश्यकता ~ ~ শি পা হহ
दरडादि का. विधानं श्वरः , ॐ _ अजब... मेड... शरद
द्रडादि. चिधानके पश्चाच् ध्यान विधि तथा उस्र काप १२६ १२७
अनुभव सिद्ध निर्म त्वक्ना वणेन -*“ “2 **+ . १२७
चित्त के चिक्षिप्त आदि चार भेद तथा उन का खरूप ˆ . १२७
निरालस्थ उयान खेचन का उपदेश व् उस को विधि“ १२८
चदिरात्मा च अन्तरीत्माक्ताखरूप * ˆ“ ““ १९८
परमात्माका खूप. ˆ ~ ^ ~ ~ १२८
योगी का. कर्तव्य না द ~ „~ १६८
यात्सध्यान का फलि = = = ` १२८
तत्त्वज्ञान प्रकट होने का हेतु... “*“ ` ` १२८ ६
णुरुसेचन की आज्ञा == च তি = ` १२६
হাফ-লহিলা ` তা = 7 পাত তি १२६
নি মা জীভাজীলঘ জ্ধহলা' - ৭ 7 7 ইহ
सद्भुदप तथा कामना कात्याय.. ५ ৩ তা १२६
क्षौदासीन्य মহিমা = ११, १०6 #कंजाह | के ^ १२६ |
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