शीघ्रबोध भाग - 3 | Sighra Bodh Bhag - 3
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13 MB
कुल पष्ठ :
424
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(१३)
भ्रस्तावना.
प्यारे सज्जन गण !
यह बात तो आपलोग बखुबी ज्ञानते है कि दरेक धर्मका
हत्व धमे साहित्य के ही अन्तगैत रहा हुवा है जिस धर्मंका
मसादहित्य মিহাক क्षेत्रम विकाशित होता है उसी धमेका धमे
1हत्व भी विशाल मूमिपर प्रकाश किया करता है अर्थात् ज्यों
त्यो धमेसादित्य प्रकाशित होता है त्यों त्यों धमंका प्रचार बढा
। करता दै।
आज सखुधरे हुवे जमानेके हरेक विद्धान भरत्येक धम सादित्य
भपक्चपात दष्टिसे अवलोकन कर जिस जिस साहित्यके अन्दर
वत्व वस्तु होती है उससे युणयादही सज्ञन नैक दष्टे ग्रहन कीया
বহন है अतेव धम साहित्य प्रकाश करने कि अत्यावश्यक्ता को
तब संसार एक दृश्सि स्वीकार करते है।
धभ साहित्य प्रकाशित करने मे प्रथम उत्साही महाद्ायजी
ओर साथम लिखे पढे सद्दनशील निःस्पृद्दी पुरुषार्थी तथा तन
्॒नन धनसे मदद करनेवार्ों कि आवश्यक्ता द्दै।
प्रत्येक धमेके नेता लोग अपने अपने धम साहित्य प्रकाशित
कऋरने में तन धन सनसे उत्साही बन अपने अपने घम साहित्यकां
नगतमय बनाने कि कोशीस कर रहे है ।
दुसरे साहित्य प्रेभिर्यो करि अपेक्षा हमारे जैनधमेके उच्च
कीटीका पवित्र और विशज्ञाल साहित्य भण्डारों कि ही सेवा कर
रहा है पुरांणे विचारके लोग अपने साहित्य का महत्व ज्ञान
भण्डारोंस रखने मं ही समझ रहे थे । इस संकुचित विचारोसे
हमारे धर्म साहित्य कि क्या दर्शा हुई वह हमारे भण्डारों के
User Reviews
No Reviews | Add Yours...