सम्यक्त्वपराक्रम भाग-2 | Samyaktvparakram Part-2

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Samyaktvparakram Part-2 by जवाहरलालजी महाराज - Jawaharlalji Maharajपं. शोभाचंद्र जी भारिल्ल - Pt. Shobha Chandra JI Bharilla

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पं. शोभाचंद्र जी भारिल्ल - Pt. Shobha Chandra JI Bharilla

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(६) पाँडरों बोर चारिए। आलोचना परने में किसी प्रकार का कलश नहीं होता चाहिए | कपट करऋ दूसरे की चाँखां में घूत मंडी जा सकती है, परन्तु कया परमात्मा को भी चोखा लिया चा सकता है? नहीं। परमात्मा को घोषा दने ९ असफल चेप्टा करना अपने आप थो कष्ट में डालने छ ममान है। अत आलोयना में सरलवा और तिःकपटता रखना आवश्यक है। शास्त्र ঈ মী ফতা £-- माई मिच्छदिद्टी, रमा सम्मदिद्वी अथान--भहों कपट है वर्दा मिध्यारव है और जहाँ सरलता है वहाँ सस्यदशन है। लोग सम्यदरान चाइत हैं मगर सरलता से हर रहना चाहत हैं। यह नो थही बाद हुई कि 'रोपा पढ़ चयूज़ शा आम कहाँ से द्वाय ।! 0 भक्त ने कद्दा है -- मन को भतौ एक ही माँति। चाहत मूनि मत अ्रमम सुझृद फल मतसा अ्रथ ने अघाति ॥ अथान--सभी का मन उत्तम फ्ल व) आशा रखता हैं। विस उत्तम फल की वल्पना साघु भी नहीं क्र सक्त, पैसा उत्तम फल ती चाहिए मगर कार्य बैसा नहीं चादिए । तीथैड्र गोध का बध होना, शास्त्र में बढ़े स बड़ा फ्त माना गया है। अगर कोई के कि यह फ्ल आपको मिलेगा छो फ्या आपको प्रसन्नता नहीं होगी। মনসা খই फल्त बाचार में बिकवा है जो खरीद कर क्षाया सजा सकें । मन सो पाप से बचठा नहीं है, फिर इतना मद्दाम फल উন मिल सकता हूँ ? अतण्व मद्रान्‌ फन्न की भाति क निर्‌ हदय में मरक्षदा धारण करो और अपन अपयाधों यो गुर के समत्त सरलता के प्रकट कर दो | इस प्रकार सरतता छा व्यवद्दार कश्न स दी आत्मा का कल्याण हो सकता हैं)




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