श्री मद्वाल्मीकीय रामायण | Shri Madwalmikiya Ramayan

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Shri Madwalmikiya Ramayan  by चन्द्रशेखर शास्त्री - Chandrashekhar Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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११ किष्किन्धाकाण्डम्‌ स्वास्थ्यं भद्र भजस्वार्य त्यञ्यतांटृपणा मतिः। अर्थो हि नष्टकार्याये रयनेनाधिगम्यते ॥ १२०॥ उत्साहो बलवानायं नास्तयुत्साहात्परं वलम्‌ । सोत्साहस्य हि छोकेषु न किंचिदपि दुलभम।१२१॥ उत्साहवन्तः पुरुषा नावसीदन्ति कमसु । उत्साहमात्रमाभित्य प्रतिर्प्स्याम जानकीम्‌।।१२२॥ त्यञ्यतां कामृत्तत्वं शोकं संन्यस्य पृष्ठतः । महात्मानं कृतात्मानमात्मानं नावबुध्यसे ॥ {२३॥ एवं संबोधितस्तेन शोकोपहतचेतनः । न्यञ्य शोकं च मोहं च रामो ेयेगुपागमत्‌ ॥१२४॥ सोऽभ्यतिक्रामदव्यग्रस्तामचिन्त्यपराक्रमः । रामः पम्पां सुरुचिरां रम्यां पारिष्वदुमाम्‌ ॥१२५॥ निरीक्षमाणःसहसा महात्मा सवेवनं निक्षरकंदरं च । द्विश्रचेताःसहलक्ष्मणेन विचायं दुःखोपहतःपतस्थे ॥१२६॥ तेमत्तमातङ्गविखासगामी गच्छन्तमन्यग्रमनामहात्म । सलक्ष्पणो राघवमिषटवेष्टठो ररक्ष धर्मेण बलेन चैव ॥१२७॥ ता्यमूकस्य समीपचारी चरन्ददशांदुतददानीयौ । श्ाखामृगाणामधिपस्तरस्वी वितत्रसे नेवविचष् वेष्म्‌॥१२८॥ स तौ महात्मागजमन्दगामी शाखामृगस्तत्र चगुशचरन्तौ । दृष्टा विषादं परमं जगाम चिन्तापरीतो भयभारमग्रः ।॥१२९॥ आर्य, आप स्वम्थ हो जथ, पयं धारण करं । इस कायरताका त्याग करें । आप उद्योग करे, क्योंकि उद्योगके अभावमे अथंसिद्धि नदीं होती । जिनके उद्योग और घन नष्ट द्वो जाते हैं, वे अपने नष्ट धन को पुनः नहीं पा सकते || १२० | आय ! उत्साहमें बड़ा बल है। उत्खाहसे अधिक कोई बल नहीं 21 जो लोग उत्साही हैं, उनके लिए संसारमें कुछ भरी दुलेभ नहीं है ॥ १२१॥ उत्साद्दी पुरुष दुष्कर कासोंमें भी घत्रड़ाते नहीं । उत्साहकी ही सहायतासे हमलोग जानकीको पा सकेंगे ॥ १२२ ॥ आप इस कामपरतन्त्रताका त्याग करें। शोक भूल जाँय। आप अपने शिक्षित ओर धीर भनको इस समयमे मूल गये है ॥ १२३ ॥ लक्ष्मणके इस प्रकार सममानेपर रामचन्द्रने शोकके कारण ₹त्यन्न भपने विन्तकी विकलता दुर की । मोहको उन्होंने हटाया और घैये धारण किया ॥ १२४ ॥ अचिन्ध्यपराक्रम रामचन्द्र बिकृलताका त्यागकर उस पम्पासे आगे बद, जके बृक्त बायुसे हटा दिए गए थे, अत्एव जदहाँकी शोभा अधिक बढ़ गयी थी ॥ १२५॥ इद्धि्नचित्त और दुःखत्री महात्मा राम विचार कर, अर्थात्‌ सीताको ढेँढ़ना चादिए यह समझकर, समस्त वन निमर, कन्द्रा आदिको देखते हुए चले ।| १२६ ॥ जाते हुए उन रामको, मतवाल हाथीके समान सुन्दर चलनेवाले, धमोत्मा और बलवान तथा अपने इष्ट रामचन्द्रके लिए सब प्रकारका उद्योग करनेवाले लद्मणने सम्भाला ॥ १२७ || ऋष्यमूक पवेतके सभीप अ्रमण करनेवाले, अतुलनीय सुन्दर इन राम और लक्ष्मणको वानरोंके अधिपति सुप्रीवने देखा। वहू डर गया, अतएव वह इनके प्रति कोई अपना कर्तठ्य निश्चित न कर सका ॥ १२८ || द्वाथीके समान मन्द गमन करनेवाले इनको देखकर वानरोंका स्वामी बहुत दुखी हुआ । चह चिन्तित हो गया और उसका उत्साह




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