शाल - गिरह की पुकार पर | Shal Girah Ki Pukar Par
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
184
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)20 : शाल-गिरह की पुकार पर
राजा-जमीदार दुर्गापूजा में हमें, पहाड़ियों को, फल-मिठाई-कपड़े और
पगड़ी भेज सम्मान देते ই। संबंध अच्छे रखते हैं ।”'
“तुम किसके अधीन हो ? ”
धमं के । अपने देवता के 1“
“ठीक है, मान लिया। भरे, प्रेम से तो लकड़ी की पुतलियाँ वशीभूत
हो जाती हैं, फिर ये तो दुखी कष्ट के मारे लोग हैं। गाँव-गाँव में बसे
डोम-चमार-कुम्हार समझ गये कि इससे शांतिमय जीवन उन्हें कहीं नहीं
मिलेगा । गाँव में रोज्ञगार करने वालों को इतना सम्मान कभी नहीं
मिलता । कोठे धान से भर गये । गोहाल में गायें। नये साल के पूस-पर्व में
मनसा की पूजा संथाल देख गये । बोले, “यह अच्छी वात हुई 1
कड़ाके की सरदी। फ़रवरी का महीना । दीए में महुआ के तेल की
बत्ती जलाओ, शाम ढलने पर | दूर पहाड़ पर हाथी उतरे | उनकी तीखी
तेज आवाज सुनायी पड़ी } वाघ करा गम्भीर गर्जन भी । नवजात शिशु पैदा
होने पर थाली बजने की आवाज़ सुनायी दी । लड़का हुआ है, लड़का ।
गाँव में सभी खुश हो गये । सुंद्रा मुर्मू के बेटा हुआ है।
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1750 में सुंद्रा मुर्मू के घर तिलका पैदा हुआ। उसके साल-भर का
होते-न होते पहाड़ से हाथी फिर उत्रे। हाथी तो हर साल उतरते हैं।
लेकिन इस बार वे पगडंडी पकड़ कर पहाड़िया गाँव में चले गये। बस, धान
के सारे खेत तहस-नहस हो गये ।
पहाड़िया गाँव का प्रधान आया सुद्राके गाँव । गाँव के मुखिया माफी,
सुंद्रा के बाप के पास | सुंद्रा के बाप ने उसे बिठाया और गुड़ तथा पानी
दिया। पहाड़िया दो सुगियाँ लाये थे। वे उसने सोमी को दे दीं | फिर
बोला, “अब कहो ।”
_ तुम ठीक से हो | कुछ पता है ?”'
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