शाल - गिरह की पुकार पर | Shal Girah Ki Pukar Par

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Shal Girah Ki Pukar Par by महाश्वेता देवी - Mahashveta Devi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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20 : शाल-गिरह की पुकार पर राजा-जमीदार दुर्गापूजा में हमें, पहाड़ियों को, फल-मिठाई-कपड़े और पगड़ी भेज सम्मान देते ই। संबंध अच्छे रखते हैं ।”' “तुम किसके अधीन हो ? ” धमं के । अपने देवता के 1“ “ठीक है, मान लिया। भरे, प्रेम से तो लकड़ी की पुतलियाँ वशीभूत हो जाती हैं, फिर ये तो दुखी कष्ट के मारे लोग हैं। गाँव-गाँव में बसे डोम-चमार-कुम्हार समझ गये कि इससे शांतिमय जीवन उन्हें कहीं नहीं मिलेगा । गाँव में रोज्ञगार करने वालों को इतना सम्मान कभी नहीं मिलता । कोठे धान से भर गये । गोहाल में गायें। नये साल के पूस-पर्व में मनसा की पूजा संथाल देख गये । बोले, “यह अच्छी वात हुई 1 कड़ाके की सरदी। फ़रवरी का महीना । दीए में महुआ के तेल की बत्ती जलाओ, शाम ढलने पर | दूर पहाड़ पर हाथी उतरे | उनकी तीखी तेज आवाज सुनायी पड़ी } वाघ करा गम्भीर गर्जन भी । नवजात शिशु पैदा होने पर थाली बजने की आवाज़ सुनायी दी । लड़का हुआ है, लड़का । गाँव में सभी खुश हो गये । सुंद्रा मुर्मू के बेटा हुआ है। 2 1750 में सुंद्रा मुर्मू के घर तिलका पैदा हुआ। उसके साल-भर का होते-न होते पहाड़ से हाथी फिर उत्रे। हाथी तो हर साल उतरते हैं। लेकिन इस बार वे पगडंडी पकड़ कर पहाड़िया गाँव में चले गये। बस, धान के सारे खेत तहस-नहस हो गये । पहाड़िया गाँव का प्रधान आया सुद्राके गाँव । गाँव के मुखिया माफी, सुंद्रा के बाप के पास | सुंद्रा के बाप ने उसे बिठाया और गुड़ तथा पानी दिया। पहाड़िया दो सुगियाँ लाये थे। वे उसने सोमी को दे दीं | फिर बोला, “अब कहो ।” _ तुम ठीक से हो | कुछ पता है ?”'




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