जमनालाल बजाजकी डायरी भाग-5 | Jamanalal Bajaj Ki Dayari Part-5

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काका कालेलकर - Kaka Kalelkar

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रामकृष्ण बजाज - Ramkrishn Bajaj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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৪ हल याद हो । देविने गमाज या समेटम्‌ वरः তীয়, যয আল টি आदि के द्वारा समाज को सम्हालना, समर्थ दनाना सौर पिन्‍न-शिन्‍्न वर्गों वे बीच सोसहरय स्वापित बरके सहयोग गे सावेभौम बनाता, यः बाम सो बनिये बा ही है। गराधीजी मे बनिये के ये रूद थुघ पे। इसके क्षतादा बह लोशेसर ते जस्विता और चातुय से भरे हुए सेबापति भी थे । धक्षिय तभी लट सकता है, जब बनियां उमे पूर्व तैयारी बर देता है। यूरोप के: गोौपोत्तर सैयापत्ि नेपो लियन ने कहा था -- “मना चलती है पेट पर।” गाधीजो ने तहां था कि सम्यांग्रह वी सफवता बंद आधार रखता है रघसात्मक बारयंत्रम पर। उस्होंने यहां तब बहा था वि मेरा रचनात्मक पार्य क्रम अगर सारा राप्ट्र पूरी सरह मे सफल कर दे, तो रत्याप्रह बेः बिता ही मैं आपको रवराज्य ला दूगा । गाधीजी के इस रचनात्मक वगयं वा पूरा महत्व जाननेवाले इने-गिने लोगो भे भी जमनालालजी का स्थान बहुत ऊघा था। यट गुण तो मनुष्य वी आस्तिजता मे से ही प्रयट होता है। क्षत्रिय भले ही लडकर राज्य प्राप्त कर ले, राज्प चलाने वा काम भले ही क्षव्रियों का माना जाये, पर दर- असल वह है वतिये दा ही बाम । चार आश्रमों मे जिस तरह अनुभव में सिद्ध हुआ है कि गृहस्थाथम ही गवृश्रेष्ठ है, उसी तरह हमे समझना चाहिए জি चार वर्षों मे भी श्रेप्ठता कबुल करनी चाहिए वेश्य-वर्ण बी । वश्य-धमं को सावंभौमताके नीचे ही ब्राह्यण-घ्म ओर क्षात्र-धमं अपने- अपने वाम में कृता्थ हो सकते है। 'वनिया गाधीजी' का सामर्थ्य किसमे है, महू अचूक देख सके थे 'बनिया-शिरोमणि जमनालालजो' हो । यह सब जानतेदाले लोग जमनालालजी वी वासरिमो केप्रायमिक वर्षों मे भी रचनात्मक प्रवृत्ति की और उनका झुकाव देख सकेगे। इस प्रेरणा को समझने के दाद ही हम खयाल कर सकते हैं कि जमनालातजी सारे देश में इतनी ते जी से क्यो घूमते थे ? देश के छोटे-वडे सब कार्यकर्ताओं का संपर्क साधकर उनके साथ हृदय की आत्मीयता ऊक॑ से स्थापित करते थे । , मतो, पु-यालन,




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