अंगारे न बुझे | Angare Na Bujhe
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
239
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)जाति और पेशा श
देर बाद उसने देखा कि दारोगाजी अन्दर चले गये और वें आदमी भी
एक-एक करके उनके पास बुलवा लिये गये ।
बाहर बैठा-बैठा वह ऊँध गया। गाँव के थानेदार बादशाह आदमी
थे । उनके सामने सिर उठाना कोई साधारण वात नहीं थी । श्रव शाम
हो गयी थी। कुछ देर णाद् उसने देला कि गौव के लोग रम-राम करके
चले गये | सब छूट गये थे । उसे दारोगा के खुले दिल परर विश्वास
हुआ । एकान्त में अपनी कहानी सुनायी । दीन का महस्थ समझाया पर
काम मुफ्त नहीं हुआ । शोर वह भी सिर्फ कोशिश करेंगे ।
खाली होकर जब वह घर लौथ तो खेले पर बैठकर पाँव फैला
दिये | आज वह कुछ अधिक थका हुआ था। उसने एक लम्बी साँस
छोड़ी शोर सिर से पगड़ी उतार कर धर दी | फिर श्रपनी कैंची फिरी
खोपड़ी पर हाथ फेरा | और फिर उठ कर खाट पर लेट गया, जिस पर
से उसके पाँव बाहर निकल रहे थे।
बीची सामने आ गयी | उसने मुस्कराकर कहा---थ्राज बड़ी देर कर
दी । कहाँ गये थे १ ।
उसे कुछ-कुछ मालूम था कि उसके पति का रामदास से मुकदमा.
चल रहा था, जिसमें उसका पति हार गया है । अन्न वह इसी की सौंप में
बैठा है। अपना अधिकार दिखाने को जो उसने प्रश्न पूछा वह ठीक'
निशान पर बैठा । अब्दुल का सिर कुक गया ।
उसकी पहले तो हिम्मत ही न पड़ी, किन्तु उसके बार-बार पूछने पर
उसे लाचार होकर सब सुनाना पड़ा | तरह चुपचाप उसकी ओर देखती
रही । उसके चुप होते ही ज्ञी का चातु््य अत्र खु लपड़ा--मैं कहती थी
न कि पहले मेरी बात सुन लो । झब हो गया !
उसका व्यंग सुनकर श्रब्दुल्ञ नें कहा--तो मैं करता भी क्या !
सत्रीने उसे घूर कर देखा | अब्दुल सहम उठा। तबख्री ने अपने
दोनों हाथ' चला कर कहा--/वह सब बड़े लोगों के खेल हैँ | बकील से
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