गृहस्थ जीवन निर्देशिका | Guhatya Geevan Nirdasika

Guhatya Geevan Nirdasika by स्वामी ज्योतिर्मयानन्द - Swami Jyotirmyanand

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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नव विवाहितो के लिए १५ गरिमामय बुढ़ापा बिताइए क्या आपते कभी विचार किया हैं कि भौतिकवादी व्यक्ति जिनका लक्ष्य इन्द्रिय भोग रहा ह वे जब वृद्ध हो. जाते हैँ तो उनकी क्या हालत होती है? उन्हे अपने मन पर कोई नियंत्रण नहीं होता परिणामतः उनका वर्य ओर सहन-शक्ति समाप्त हो जाती है । वे कत-बात पर उत्तेजित हो जाते है | युवावस्था मेँ भले ही उनके पास आश्वर्यं जनक विचार, परिकल्पना ओर योजनं क्‍यों न रही हों। परन्तु, वृद्धवस्था के आते हीं वह सब समाप्त हो जाता है। भले ही कभी वे तीव्र बुद्धिवाले, चिन्ता रहित व्यक्ति रहे हों परन्तु, उम्र ढलते ही मानसिक रूप से दुर्बल, व संकल्पहीन और तुनक मिजाजी बन जाते हैं। बुद्धों की तुतक मिजाजीं और अधीरता पर तो कई कहावतें भी बन गई हैं। कहा जाता है-“तूफान जाता है, शोर मचाता है और थोड़ी देर मेँ शान्त हो जाता है। परन्तु, जो तुनक मिजाजी और बात-बात पर कोधित होने वाले हैं, उनका शोर तो रात-दिन चलता रहता है। आप स्वयं को ऐसा बूढ़ा नहीं बनाइए। यदि आप सावधान नहीं रहेंगे तो धीरे-धीरे उम्र बढ़ने से साथ आप में वे सभी दुर्गुण आ जायेंगे जिनको आप कभी पसन्द नहीं करते थे। परन्तु, जब ब्रहमचर्य और गृहस्थाश्रम के समय आप थोड़ी सावधानी रखेंगे तो उनसे सहज ही बच सकते हैं। जब आप साधनामय धर्मावलम्बित जीवन व्यतीत करेंगें तो उम्र के बढने के साथ-साथ आप अधिकाधिक सुख, शान्ति-और संतोष का अनुभव करेंगे। आप तनाव रहित, आत्मशक्ति सम्पन्न और आत्मसंयमी बन जायेंगे। आपको अपने मन पर नियंत्रण होगा और आप अपने तथा सम्पर्क में आने वाले सभी लोगों के लिए प्रेरणा सौत बन जामेंगे। परिस्थितियों के अनुकूल बनिये परिवार में चाहे कितने अच्छे सदस्य क्यों न हों, परस्पर कितनी भी समझदारी क्‍यों न हो, फिर भी एक दूसरे के साथ अनुभव पर आधारित अनुकूलनशीतलता उत्पन्न करना आवश्यक है। आपको एक दूसरे को अच्छी




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