तमिल वेद | Tamil Ved
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5.52 MB
कुल पष्ठ :
318
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)था । इनका गाइंस्थ्य जीवन बढ़ा ही आनन्द-पूर्ण रहा है । चासुझी मालूम
नहीं अछत जाति की थी या मन्य जाति की; पर तामिल लोगों में उसके
चरित्र है सम्बन्ध में जो किम्वदन्तियाँ प्रचलित हैं, भौर जिनझा वर्णन
भक्त छोग बड़े प्रेम भौर गोरव के साथ करते हैं उनसे तो. यह कद्दा जा
सकता है कि वासकी एक पूजनोय सच्ची लाये देवी थी । आय-कर्पना
ने आदश महिला के सम्बन्ध में जो ऊँची से ऊँची ओोर पचिश्रतम धारणा
बनाई है; जहाँ मभिमानी से अभिमानी मनुष्य श्रद्धा और भक्ति, के
साथ मपना सिर झुका देता है, वह उसकी अनन्य पति-भक्ति, उसका
चविश्वविजयी पातिन्नत्य है । देवी वासुकी में इस इसी गुण को पूर्ण तेज़
से चमकता हुआ पाते हैं । तिसवल्लुवर के गाहस्थ्य जीवन के सम्पन्घ
में जो कथायें प्रचलित हैं, वे उर्यों की स्यों सच्ची हैं यह सो कौन कद
सकता है ? पर इसमें सन्देह नहीं कि इससे धर्म तामिल लोगों की
गाहस्थ्य जीवन की घारणा का परिचय सिलता दै ।
कहा जाता है वासुकी अपने पत्ति में इतनी भजुरक्त थीं कि उम्होंमे
अपने च्यक्तित्व को दी एकदम सु दिया था । उनकी भावनाएँ, उनकी
इच्छायें यहाँ तरू कि उनकी जुद्धि भी उनके पति में ही. लीन थी । पति
की साज्ञा सानना ही उनका प्रधान धर्म था । घिवाह करने से 'रव
तिर्वत्लुवर ने कुमार चाखुकी की नाज्ञापालन की परीक्षा भी ली यी ।
वासुकी से कीलों भौर लोहे के डुकदों को पकाने के लिए कड़ा गया सौर
वासुकी ने बिना किसी हुब्जत के, प्रिना फिसी तकं-वित्तकं के चेसा ढी
किया । तिर्वव्छुवर ने दाखुझी के साथ विवाह कर लिया भर जय सऊ
वासुकी जीवित रही, उसी निष्ठा भर शनन्य श्रद्धा के साथ पति
की सेवा में रत रही । तिसूव्लचर के साइंस्थ्य जीवन की प्रशंसा सुनकर
एक सन्त उनके पास शराये भर पूछा कि घिवाहित जीवन र्टा हैं
बथवा भविवादित ? तिरुवल्लपर ने इस प्रश्न का सोधा उसर न देकर
अपने पास कुछ दिन ठदर कर परिश्थिति का श्षप्ययन दरने को बा !
एक दिन सुवह को दोनों जने ठण्टा मात रग रहे. थे जसा कि गये
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