मेरा साहित्यिक जीवन | Mera Sahityik Jivan

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Mera Sahityik Jivan by भगवानदास केला - Bhagwandas Kela

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( च ) जिक लेख--ग्राम-सुधार सम्बन्धी लेग्व--साहित्यिक यात्रा सम्बन्धी लेख--- स्थानीय विपयों के लेख--लेखों का पारिश्रमिक | (२) सम्बाद्‌ सम्बादां का महत्व--सम्बादों के लिए पत्र का चुनाव--सम्बाद ओर खूफिया पुलिस--सम्बाददाता का नाम देने की बात । (३) पुस्तकावलोकन पुस्तक पढ़ने की रचि--पुम्तकों का चुनाव--पुस्तकों के नोट-- मेरा पुस्तक-संग्रह--पुस्तकावलेीकन का प्रभाव । (४) पत्रावलोकन पत्रावलोकन का शक; मुख्य उद्देश्य -सम्पादकों से सम्बन्ध पत्रिकाओं का विशेष उपयोग; उनके 'कटिग”--विशेष वक्तव्य | पृष्ठ ४८ से १६२ पत्र चोदहवाँ अध्याय साहित्यिक यात्राएँ यात्रा का उद्देश्--देहली में, पंडित रामचन्द्र जी--कानपुर में, श्री विद्याथी--फतहपुर में; इसलामी शाहनामा--प्रयाग में साहित्यिकों का अड्ड|--बनारस में; श्री पराडकर--कराशो विद्यापीठ--- ज्ञानमंडल-- हिन्दू विश्वविद्यालय--एक मनारंजक घ्रटना--लेखकों के, उद्गार-- में, अब हिन्दी में न लिखूंगा ?--'प्रतिकलताएँ होत द्रृए मी राष्ट्र भाषा की सेवा करू गा--- 'अश्रब समालोचना लिखना बन्द कर दूँगा ।' पृष्ठ १६३ से १७० पन्द्रह अध्याय साहित्यिक संस्थाप साहित्यिक संस्थाओं का सुधार--हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग-- खटकने वाली बात--परीक्षकों का पारिश्रमिक देने का विपय--सम्मेलन की प्रकाशन-नीति--सम्मेलन के लिए. कुछ सुकाव --नागरी प्रचारणी




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