आधुनिक हिन्दी का आदिकाल | Adhunik Hindi Ka Aadikal

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Adhunik Hindi Ka Aadikal  by श्री नारायण चतुर्वेदी -Shri Narayan Chaturvedi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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४ ग्राधुनिक हिन्दी साहित्य का प्रथम चरण और उसे एक सीमा से आगे नहीं बढने दिया । मैं ्रापसे निवेदन कर चुका हूँ कि मैंने हिन्दी का अध्ययन नहीं किया, किन्तु एक बात में में आपमें से भ्रधिकांश लोगों से अधिक सौभाग्यशाली हूँ। मेरे पूज्य पिता हिन्दी साहित्य में रुचि लेते थे-- यद्यपि साहित्य की अपेक्षा धार्मिक विषयों में उनकी रुचि अधिक थी। वे हिन्दी के लेखक भी थे। उन्होंने श्री राघवेनद्ध और श्री यादवेन्द्र नामक मासिक पत्रों का कई वर्ष सम्पादन भी किया, अनेक पुस्तकों लिखीं। इस कारण हमारे यहाँ प्रयाग में उस समय के सभी साहि- त्यिकों का आना जाना होता था। प्रतएव बचपन ही मं मुभे उस समय के साहित्यिक महारथियों के दशनों का सोभाग्य प्राप्त हुआ था । पं० बालकृष्ण भट्ट, अमृतलाल चक्रवर्ती, लज्जाराम मेहता, किशोरीलाल गोस्वामी, माधवप्रसाद मिश्र, राधाक्रष्ण मिश्च, चन्द्रधर गुलेरी, बालमुक्‌न्द गुप्त, जगन्नाथप्रसाद चतुर्वेदी, सकल नारायण शर्मा, गंगाप्रसाद गुप्त, गिरिधरशर्मा नवरत्न, रत्नाकर जी, श्रीधर पाठक, जगन्नाथ राजवंद्य, जगन्नाथप्रसाद शुक्ल, भगवान दास हालना, गिरिजाफुमार घोष, माधवराव सप्रे, श्यामसुन्दर दास, शिवकुमार सिंह, गदाधर सिंह, प्रेमघन”, महावीरप्रसाद द्विवेदी, गोविन्दनारायण मिश्र, लाला सीताराम, शिवचंद भरतिया, आदि अनेक विभूतियों के दर्शन हुए और उनकी छवि स्मृति पटल पर आज भी अंकित है । उन दिनों राजधि टंडन, लक्ष्मीनारायण नागर, आदि स्थानीय हिन्दी कार्यकर्त्ता तो बहुधा घर पर श्राते ही रहते थे। उस समय मेंने युवक मंथिलीशरण गुप्त के भी दर्शन किये। तब वे लाल पगड़ी बाँधते थे और उनकी वह छवि झाज तक विस्मृत नहीं हुईं। बाद में मेरा परिचय छायावादी और परवर्ती साहित्यकारों से हुआ, जिनमें से अनेक से मेरी मेत्री और घनिष्टता रही, जसे आचार्य रामचन्द्र शुक्ल, प्रसादजी, निरालाजी, हितेषीजी, श्रनूपजी, हरिश्रौध जी, केशव प्रसादजी मिश्र, मन्नन द्विवेदी गजपुरी, रसिकेनदर- जी, बालकृष्ण शर्मा नवीन , वेकटेशनारायण तिवारी, हरिशंकर शर्मा, गुलाबराय आदि । बहुतों से में बहुत निकट श्रा गया ।




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