शकुन्तला | Shakuntala
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
730 KB
कुल पष्ठ :
68
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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करता है तू पश्चशर ! विद्ध यदपि मम चित्त |
ह कृतस तेरा तदपि मँ इस काय्यै-निमित्त
में इस कार्य-निमित्त मानता हूँ गुण तेरा,
इस प्रकार उपफार सार! होता है मेरा ।
जिस सुमुखी का विरह धेथ्य मेरा हरता है,
उसके ही मिल्ताथ प्रेरणा तू करता है ॥”
[ ५ এ
इस प्रफार से घूमते छोड फाम सब श्प्रौर।
देखी दरम ने निज प्रिया एक मनोहर टोर॥
एक मनोहर ठोर पड़ी पहच-शय्या पर,
श्चीण कटाधरकला-सरश तो भी प्रति सुन्प्र ।
लगे देसने नृपति उसे तन बड़े प्यार से,
ইহ न फोर सके खड़े हो इस अफार से ।
[ ६ ]
जैसे उसके घिरद् में व्याकुल ये दुष्बन्त।
बह भी थी उनके दिना व्यप, पिकर अत्यन्त]
व्यप्र-विकल अत्यन्त, नं धीरज धरती थी;
प्रेम-सिन्धुल्यडवामि-त्रीच जू जल मरती थी ॥
* सथ शीतऊ उपयार ` दृशन करत में एऐसे--
नव॑ सलिनी को सुद्दिन दद्न फरता है जैसे ॥
पत्र
१२
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