अनघ | Anagh

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Anagh by मैथिलीशरण गुप्त - Maithilisharan Gupt

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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न चार मघ~- अनघ मानो न ओर प्रमाद + यह आज की है याद । टै बगैं जिनका सन्य ঃ अनुचित उन्हे है देन्य यह है उन्‍्हीकी रीति मेट अधम्म, अनीति । ठहरो; चर्रू में श्राप; लेकर तुम्हारा पाप--+ यह जन हुआ म्रियमाण $ भरसक कर मै त्राण । अवसर नही अब ओर , অভ है कहीं इस ठोर ए होता यहाँ यदि नीर तो कृषि न हाती वीर ! ই জীব बस, वे स्तूप ; तो मे खनू्‌गा करूप । मेरा वदी व्यायाम ; जिससे कि हो कुछ काम । ( मूच्छित जन को सावधानी से उठाकर मघ का प्रस्थान ) तोसरा षोर- टटा हदा ! यह हाथ ! নীপা লী मेरा उसीके साथ !




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