श्री रामायण दर्शनम् | Sriramayana Darshanam
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1.66 MB
कुल पष्ठ :
68
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)था काला दिकारी पेड़ के पीछे
कूद पड़ा बाहर पक्षी-मांस के लोभ से
क्रॉंचमिथधुन में पत्नी दुःखतस चिल्लाती
रुघिरसिंक्त हो कर बालू में गिरी
व्याघ के हाथ में प्रियतम को देखते ही
लगा गिरि-गद्भर चेतन्य सब काँप उठे
मन पिघला मुनि का, निकले आँसु भाँखों में
जुटे थे वेदना के काले बादल हृदय में
दुःखतप्त वनां मुनिवर याद भायी पुराक़ृत की.
जीवन काव्य में करुणा जब प्रसव पाता
तभी जनमेगा न महाकाव्य का दिशु
सुन्दरतम छन्द:शरीर युक्त वाणी में ?
घातक व्याघ के प्रति प्रकट किया दुःख
कहा मुनिवर ने, “नहीं, निपाद, मत मारो,
गिंरिघरा-कानन-नदियों के निस्वन रूपी
संगीत में क्यों मिलाते हो विपाद-श्रुति ?
मैं भी था किसी समय तुम्हारी ही भाँति
हनन-कला में कोविद था, गर्व भी था
मुनिवर नारद की कुपा है बड़ी
समझ लिया करुणा क्या चीज़ है”
अपनी कथा सुनाई अपना तत्त्व भी ।
हृदय-द्रावक उपदेश दिया व्याव को
अहिंसा की गरिमा बतायो, कृपा से
क्रोंचपक्षी की देह वाण विमुक्त की
प्राण संचार हुआ पक्षो में संजीवनी से
युगल की' पत्नी दान्त बनी मुनि-कृपा से
लौटे मुनिवर पर्णकुटी, ध्यानस्थ बनें
झलक मिली काव्य की, दिव्य प्रतिभा को
नवनवोन्मेष-दालिनी है नित्यता प्रतिभा ।
रूप
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