गुप्तकाल का सांस्कृतिक इतिहास | Guptkal Ka Sanskritik Itihas

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Guptkal Ka Sanskritik Itihas by डॉ० भगवतशरण उपाध्याय

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about डॉ० भगवतशरण उपाध्याय

Add Infomation About

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
उपोद्धात र भी दीक्षित होने लगी---बुद्ध की मौसी और विमाता प्रजापती संघ में दीक्षित होनेवाली प्रहली नारी थी जिससे भिक्षुणी संध का समारभ हुआ । ब्राह्मण-क्षत्रिय संघर्ष वैसे तो ब्राह्मण-क्षत्रिय-सघषे अति प्राचीन, ऋग्वैदिक था, इस काल वह विशेष सचेष्ट हुमा । इस संघषं का प्रधान कारण पुरोहिताई का पेशा था जिसके महत्व और अर्जन सामर्थ्य के प्रति दोनो ही आक्ृष्ट होते थे। यह मात्र भारतीय स्थिति नहीं रही है । यूरोपीय इतिहास के मध्यकालमे ईसाई समाज मे भी यह पौरोहित्य पद आकषेण का केन्द्र बना । भृपतियों ओर सामन्तो के ज्येष्ठ पत्र तो पैतुकं दाय अर्थात्‌ पारिवारिक भू-संपत्ति के स्वामी होते थे पर कनिष्ट पू अधिकतर चच कै प्रधान पदो पर बड़ी तृष्णा से आरूढ हौ जाते थे । वैदिक काल मे ही पौरोहित्य के लिए ब्राह्मण-क्षविय-सघषे प्रखर होगया था! वसिष्ठ ओर विश्वामिव्र के वैमनस्य ने तो ऋग्वेदिकं काल के महायुद्ध दाशराज्ञ' का ही सकट ल! खडा किया जिसमे उस काल के दस राजाओ ने अपनी सेनाओ और परिजनो के साथ भाग लिया था। इसके बाद जब पुरोहिताई का झ्गडा न रहा तब भी ब्राह्मण-क्षत्रियों मे परस्पर कुलागत वैर चलता रहा था । परशुराम का क्षेत्रिय- संहार का प्रण और क्षत्रियो को शस्त्र ज्ञान न देने की शपथ इसी वैर के प्रमाण हैं। उत्तर वेदिक काल मे इस वैरने ओर भी रुद्ररूप धारण किया जब जनमेजय के पुरोहित तुर- कावषेय ने जान-बृक्षकेर अपने उस राजा-यजमान का यज्ञ भ्रष्ट कर दिया ओर जब परिणामस्वरूपं हजारो ब्राह्मणो को क्षत्नियो की तलवारो के घाट उतरना पडा गौर अनेको को राजाज्ञा से देश छोड देना पडा । क्षत्रिय बुद्ध ओर जिन ने यहं बैर विधि ओर समग्र चेतनासे निभायाथा यद्यपि उनके, विशेषतः बुद्ध के, अनुयायियो मे ब्राह्मणो का अभाव नथा। यह्‌ संधषं युगो चलता रहा, एसा राजपूत काल तक की घटनाओं से प्रमाणित किया जा सकता है, जब विदेशियो को भी क्षत्रिय करार देकर ब्राह्मणो को पारम्परिक क्षत्रियो से लोहा लेने के लिए तैयार करना पड़ा ।१ बुद्ध के उपदेशो ने नि.सन्देह देश मे एक क्राति पैदा कर दी। न केवल क्षत्रिय बल्कि निचला वणं भी ऊपर उठा ओौर कालान्तर मे शूद्र महापद्य नन्द ने ब्राह्मण-क्षत्रिय दोनो कौ सत्ता नष्ट कर शूद्रो की शक्ति प्रतिष्ठित कौ भौर मगध की राज्यश्री उसके हाथमे आ गयी । उसके प्रतिकार मे चाणक्य की ब्राह्मण मेघा ओर चन्द्रगुप्त मौयं के क्षत्रिय १ उषाध्याय, भारतोय समाज का एतिहासिक जिश्लेदण : गीता-दर्शेन भ्रथवा संघर्ष, पु. २७-४०; वही, “भारतीय चिन्तन की इन्द्रात्मक प्रगति , पु. ४०-५५, और ३१७-२७।




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now