रासलीला - विरोध परिहार | Raslela Virodh Parihar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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£ ( १५ ) খান भी ( भगवान व्यासः ) ( भगवान नारदः ) इत्यादि ऋषियों को भी भगवान्‌ विशेषण श्रातहै 1 ।किग्तु यह उनका भगवत्त्व आंशिक और रौर आगन्तुक है । यही बात ईश्वर शब्दमें भी है| ईश्वरभी साधारण ओर असाधारण होसक्ताहै । इंष्टे, असो इंश्वरः कर्वुमकदुमन्यथाकर्तु समथ इंधरः । ( इंश्वरः सवेभूतानां हृदशेडज्जुन तिष्ठति ) आदिवचनोंसे यह स्पष्टट ।जिसमें अनागन्तुक अनारोपित रीतिसे अप्रभय सामर्थ्य हो वह इंश्वर शब्दका असंकुचित अथे है, अत एवं असाधारण है। किन्तु साधा- रण आंशिक इष्टिसे देखगेतो थोडी सामथ्यं वारा भी पुरुष रेश्वर कहा जामसक्ता है | जेसे राजा । वह भी सब कुछ करने की सामथ्ये रखताहै। किन्तु छोकिक पुरुष में यह इंश्वरत्व साधारणही है । राजाने अपने प्रशम भगवान्‌ जर जगदीश्वर दोनो शब्द दोनों इष्टिस ही रखे हैं उसे सा ৬ বিটি धारण आर असाधारण दाना रातस उत्तर दल्वाना हू | वह ता सम- . शचुका है कि भगवान श्रक्षिष्ण साक्षातपृणब्रह्मह आर इसीलिये उनकी किसी लीलाओम उसे किसी तरह काभी सन्देह नदीं हे किन्त अग्रभावों किंवा तत्सामायेक कितने ही साधारण अधिकारियों के हृत्य में असं- भावना विपरीतभावनायें हो सक्ती है इसछिये उन्हे उत्तर दिलवाने के लिये उसे यह प्रश्न करना पडा है। और अत एवं उसने समझबूझ करही “ भगवान्‌ ” और “ जग- दीखर ” इन शब्दांका प्रयोग कियाहै । श्रीड्ुकदेवजी चार शछोक परथन्त अर्थात्‌ ३० वे छोक से ३३ छो+क पर्यन्त साधारण इष्टिसे उत्तर देते द! राजन्‌ ! रासछौला पर इस तरहका .




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