जीवन का काव्य | Jivan Ka Kavya

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : जीवन का काव्य  - Jivan Ka Kavya

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about दत्तात्रेय बालकृष्ण कालेलकर - Dattatrey Balkrashn Kalelkar

Add Infomation AboutDattatrey Balkrashn Kalelkar

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
जयन्ती ९ भेक वर्ग वीरोंका अपासक होता है और दूसरा आअुनका आश्नित। पहले वर्गको वीरोंके वीरकर्मोसे प्रेरणा, अत्साह और सामर्थ्य मिलती है। वीरोंकी अपासना करके वे स्वयं वीर वन जाते हैं। दूसरा वर्ग पामर होता है। ये लोग हमेशा भयभीत दशामें रहते हैं; त्यागसे डरते हैं। कहते हैं, 'बिस भयभीत दशासे जो हमें मुक्त करेगा, हमें आइवासन देगा, वही हमारा स्वामी है। अुसीका हम जय-जयकार करेंगे, अुसकी प्रसन्नता प्राप्त करेंगे, और ञुसके वीरकर्मके याश्रयमें हम सुखी रहेंगे । वह अगर चला जाय, तो जीदवस्ते हम प्रार्थना करेंगे कि हे प्रमों! हमारे छिओ्रे दूसरा कोओ नाथ भेज दे हमें सनाथ कर! अनाथ लोग जब वीरपूजा करते हैं, तो आस पूजाके पीछे जिसी प्रकारकी अनाथोंकी याचना-ृत्ति रहती है। विल्लीका वच्चा कहता है, ज मेरी मां, आ और मुझे आअठाकर किसी सुरक्षित स्थानमें रख। पक्षियोंके . वच्चे कहते हैं, हमारी मां अपने पंखोंको फड़फड़ा कर वताये तो हम भी वैसा ही करेंगे।” जिस प्रकार जयन्तियां दो तरहसे मनाओ जाती हूँ। हिन्दुस्तानर्मे जब तक अनाय-वृत्तिसे जयन्तियां चलेगी, तव॒ तक देदामें पुरुषार्थ नहीं आनेका। जैसी श्रद्धा वैसा फल † ‹ विदवंभर प्रभुके मने जव दया स्फ्रेगी, तव वह हमें अलौकिक पुरुष दे देगा, और हम बुसे निचोड़कर --वाजारमें वेचकर--सुखी हो जावेंगे।” जित्त प्रकारकी वृत्तिमें जितनी सुरक्षितता है, अुतना ही अवःपतन भी है। पुण्यपुरुषोंके वलिदानसे जिस लोकका वैभव प्राप्त करनेमें पुण्यक्षय है; प्राणक्षय है। पुण्यपुरुषके बलिदानसे जब हममें भी वलिदानकी वृत्ति जाग्रत होगी, तभी यह समझा জানলা कि हमने सुसकी सच्ची अपासना की है। और तभी हमारा सच्चा आत्कर्प होगा। आज हमे ओरवरते अँसी प्रार्थना नहीं करनी चाहिये कि 'हम तो पामर ही रहेंगे। तुम अवतार धारण करके हमारा दुःख-निवारण करो।* हमें परमात्मासे तो यह कहना चाहिये कि जनादेन ! हमारे हुदयमें ही तुम्हारा अवतार हो जाय। वानरोंको- भी वीर पुरुष बनानेवाले अवतार हमें चाहिये। जो हमें स्वावलंवनकी शिक्षा देंगे, वैसे अवतार हमें चाहिये। क्योंकि स्वावलंवनमें हमारा सदेवका आुद्धार है। परावलम्बेनमें हमारी अवनति ` है, हमारा अपमान है 1'




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now