ईश्वरदर्शनम | Ishwaradarshanam

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(८९) धिना तदाराधनेनैव जायते । यद्यपि सर्वत्र समदर्िनः परमेश्वरस्य सर्वेषु ज॑तुषु सम एव प्रसादस्तथापीन्धराराध- नजनितांतःकरणशुद्धीनामेव पुरुषाणां तद्धहणयोग्यता भवति नेतरेषामचुद्धांतःकरणानां पापात्मनां नराणां | समोहं सर्वभूतेषु न मे देष्योस्ि न भियः! ये भजंति तु मां भक्त्या मथि ते तेषु चाप्यहम्‌ ॥ इति भगवद्धचना- दिति॥ ६ ॥ इन दोनों प्रकारके दोषकी निवृत्ति किंस उपायसे होवे है एेसी जिज्ञासा होनेसे कहे हैं. | 'तनिवृत्तिरीश्वरमसादात्‌' अहि ताचरणसे निषि नहि दोनी ओर हिताचरणमे विघ्नोका विधात होना इन दोनों दोषोकी निवृत्ति ईश्वरके भसादसेहि होवे है क्योकि परमेश्वरके आराधन करणेसे शुद्ध अतःकरणवाखा हया यह्‌ पुरुष अहिताचरणसे निवृत्त दहो जावे है. तथा ईश्वरके कृपाकराक्षसे इसके आध्यासिकादि सवै विप्न नाश हो जाते हैं. ओर सवै विके নায় হী আনব হুল जीवके सवे शुभ कर्म शीघ्रहि सिद्ध हो जते. है. यदह वातौ योग- शाखमे पतंजल्यिनिने भी कथन करी है ततः प्रलयकरचेतनाधिग- मोप्य॑तरायामावश्चः अर्थ--द्धरके आराधना करनेसे जालमखरूपका ज्ञान ओर सवै प्रकारके विघोंकी निवृत्ति होवे दै इति । सो रास्रोक्त विधिसे शधरके आराधन करनेसेहि यह जीव इश्वरकी




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