हिन्दी - वाडमय का विकास | Hindi Vadmay Ka Vikas
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
29 MB
कुल पष्ठ :
551
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)विषय-प्रवेश भ्
खड़ीवोली' नामक रूप है, और यही रूप भारत की राष्ट्रभाषा के रूप
में स्वीकृत है। पर 'हिन्दी-साहित्य' शब्द में 'हिन्दी' का श्रथं पर्याप्त व्यापक
है। खड़ीबोली के अतिरिक्त ब्रजभाषा, अवधी, पश्चिमी राजस्थानी और
मेथिली भाषाओं के साहित्य को भी 'हिन्दी-साहित्य' ही कहा जाता है।
ब्रजभाषा में रचित सूरदास का सूरसागर, अ्रवधी भाषा में रचित तुलसी
का रामचरितमानस, पश्चिमी राजस्थानी श्रर्थात् डिगल भाषा में रचित
चन्दवरदाई का प्ृथ्वीराजरासो और मंथिली में रचित विद्यापति की
पदावली--ये सभी रचनाएँ हिन्दी-साहित्य की अमूल्य निधियाँ हैं ।
निष्कषं यह कि--
१शौरसेनी अ्रपश्रंश से विकसित पश्चिमी हिन्दी के दो रूप---
त्रजभाषा और खडीबोली साहित्यिक भाषाएँ हैं और शेष
तीन रूप--कन्नौजी, ब्रुन्देली और बांगरू अभी ग्रामीरा भाषाएँ
हें ।
२--श्रद्धं-मागधी अ्पश्र श से विकसित पूर्वी हिन्दी के अ्वधी नामक
रूप में साहित्य का निर्माण हुआ है और शेष दो रूपों--बघेली
और छत्तीसगढ़ी में उल्लेखनीय साहित्य का निर्माण नहीं
हुआ ।
३--मागधी अ्रपञ्र श से विकसित पूर्वी बिहारी के एक रूप 'मेथिली'
का प्राचीन साहित्य हिन्दी भाषा का साहित्य माना जाता है।]
शेष दो रूपों --मगही ग्रौर भोजपुरी मे उल्लेखनीय साहित्य
का निर्माण नहीं हुआ ।
हिन्दी-साहित्य का आरम्भ
हिन्दी-भाषा में साहित्य का निर्माण कब से प्रारम्भ हुआ, इस प्रश्न
का समाधान इतिहास की दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। हिन्दी के
उपलब्ध प्राचीन ग्रन्थों में सर्वप्राचीन ग्रन्थ नरपति नाल््ह कृत 'बीसलदेव-
रासो' है जिसका रचनाकाल एक प्रति के अनुसार १०७३ संबत् माना
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