संस्कृत काव्य के विकास में जैन योगदान | Sanskrit Kavya ke Vikash Mein Jain Kviyon ka Yogdan

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Sanskrit Kavya ke Vikash Mein Jain Kviyon ka Yogdan  by डॉ नेमिचंद्र शास्त्री - Dr. Nemichandra Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१६ संस्कृत काव्यके विकासमें जेन कवियोंका योगदान भूखा आ सकता है, जिनके प्रोत्साहनसे यह ग्रन्थ प्रकाशित हो रहा हैं। में ज्ञानपोठके सभी वरीय पदाधिकारियोंके प्रति अपना हादिक आभार व्यक्त करता हूं । श्री डं. ए. एन. उपाध्येके प्रतिं भी नतमस्तक हूं, जिनके स्नेह भौर समालोचनसे लाभान्वित हुआ हूँ । अन्तमें अपने गुरु पृज्य श्री पं० कैलाशअरदजी शास्त्री, वाराणसोके चरणोंमें भी श्रद्धाभक्ति व्यक्त करता हूँ, जिनके आशीर्वादसे यह ग्रन्थ लिखा गया । सहयोगियोमे श्री डँ. राजाराम जैन गौर श्रो पं० रामनाथ पाठक प्रणयीका भो उपछृत हूँ, जिनसे प्रेरणा और प्रोत्साहन प्राप्त हुमा । प्रफ संशोधनका कार्य श्री पं० महादेवजो चतुर्वेदीने किया है। उनकी इस सत्कृपाके लिए भी मैं आभारो हूँ । इस प्रयासमें सहयोग देनेवालोंमें मैं अपनी घर्मपत्नो श्रोमतों सुशोलाजीको भी साधुवाद देता हे, जिनको कर्मठताके कारण मैं घरेलू विन्ताओसे मुक्त रहकर साहित्यदेवताकी आराधनामें तत्पर रहता हूँ । अन्तपें सभो सहायता करनेवाले महा- नुभावोंके उपकारका स्मरण कर अपना आभार व्यक्त करता हूँ । भोलाभवन, १, ने|मिचन्द्र शास्त्री महाजन टोलो, आरा




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