अनेकार्थरत्नमञ्जूषायां | Anekartha Ratna Manjusa (1933) Ac 4841
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
183
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रसावननां १३
अन्थनाम । प्रस्थमानम् रचनासंवत्
दा।न-शील-तप-भावनासंवाद ( गू. ) १६६२
रूपकमाला 5वचूर्णि! ४०० १६६३
चारप्रत्येकशुद्धरास (मू. ) १६६५
चातुमौ पिकव्याख्यानम् छ ५
कालिकाचायेकथा १६६६
श्रावकाराधनाविधिः १६६७
शीलछत्रीसी (गू. ) १६६९
सन्तोषछश्रीसी ( गरू. ) १)
प्रियमेलकरास ( गरू. ) १६७२ १०
सामाचारी शतकस् १
“विशेषशतकम् ?)
१ छ्ींबडी साण्डागारसत्कायां प्रत्यां प्रशस्तिरियम्---
“सोझसइ बासदि ( १६६२ ) समइ रे “सांगा' नगर ৫) मक्षारि 1
पद्मप्रभ सुपसार रद् रे एषह भण्णड জছিক্ষাই ই ॥ ६ ॥
सोष्म सापि परंपशा रे खरतर गच्छ कुरुचंद् । युगप्रधान जगि षरगडा रे श्रीजिनचनद्ग' सूरिंदो रे ॥ ७॥
तासु सीस अति दीपतो रे विनय्वत जसवंत । भाचारिज चढती करा रे धीजिनासिहवूरि महंतो रे ॥ ८ ॥
रथम श{कषि)ष्य श्रीपूजनोरे सकट चन्द् वश्ु सीस । समयस्ुच्द्र वाचक भणि रे रूप सदासुं जगीस रे ॥९॥
दान शी तपए भावनो रे सरस रषिड संवाद । भणतां गुणतां भावसुं रे रिद्धि सष्द्धि सुप्रसादो रे ॥ १०॥*
२ श्यं समशोधि भ्रीसमयद्चुन्द्रगणिपरयुरश्रीजिनचन्द्रसूरिषिष्यभीरञनि घानगणिभिः 1
४ चुनीज्ीभाण्डागारश्षस्कसष्पत्रात्मिकायाश्चातुमीसिकग्याख्यानप्रद्याः प्रान्ते --
“ भीसमयस्ुन्दं से पाध्यायविरवित्चतु्मासिकन्याख्यानं समाम् ১৯
४ वाराणसीख्यतिन्नीबारुचन्द्र मणण्डागारसष्ककारकसूरिकथाप्रतिप्रास्ते उद्टेखो यथा-~
“श्रीमद्धिक्रमसंवति रसर्तुझजार( १६६६ )सहूस्यके सहसे ।
श्री'वीरमपुर'नगरे श्रीराउलतेजसी राज्ये ॥ ३ ॥
बृहत्थरतरे गष्छे, थुगप्रधानसूरय: । जिनचन्द्रा जिनासिद्दाश, तिजयन्ते गणाणिपा: ॥ २ ४
तब्छिष्यः खकलचन्द्र), शिष्प: समयछुन्द्रः । कथां कालिकसूरीणां, चक्रे धारावबोधिकाम् ॥ ६ ॥”
५ मेड़ता गगरे राचितम्रिद्स ।
६ भीदिजयधमेर्हमी श्वान माण्डागारसस्कप्रतिप्रान्तेऽयसुखेखः--
““आओमत.खरतरगच्छे सीमजिनसिहसूरिगुरराण्ये । सान्नाज्यं कुदोणे युगपरणाना र्य विददुधरे ॥ १ ॥
विक्रमसंवति छोच्रनमुनिदर्शनकुमुद्यान्धव( ३६७२ प्रमिते 1
श्रीपाम्वेजन्मदिवसे ( पोषकृदाद्शस्यां ) पुरे ओ'सेडता'नगरे ॥ २ ॥
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