हिन्दी - साहित्य और उसकी प्रगति | Hindi - Sahitya Aur Usaki Pragati

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हिन्दी-साहित्य ओर उसकी प्रगति हिन्दी भाषा का जन्म वैदिक संस्कृत भारत की सबसे प्राचीन भाषा है । इसका प्रमाण ससार का सबसे प्राचीन ग्रन्थ ऋग्वेद है। ऋग्वेद की भाषा वेदिक सस्कृत है । यह उस समय झ्रार्यो की मातृ-भाषा थी। उस समय का साहित्य भी इसी मे रचा गया, जो वैदिक साहित्य कहलाता ह । समय के साथ-साथ वैदिक संस्कृत मे भी परिवतेन हृश्रा। उसे शुद्ध करके, उसका सस्कार करके सस्कृत भाषा बनाई गई । जब सभ्य और शिक्षित जनता सस्केत बोलती थी तो ग्रामीण जनता में उसका विक्रृत रूप प्रचलित था । धीरे-धीरे इसी विक्ृृत रूप ने सभ्य और शिक्षित वर्ग में महततव का स्थान प्राप्त कर लिया । यही भाषा पाली' या श्रथमं प्राकृतः कहलाई । जव प्रथम प्राकृत भाषा जन साधारण मे प्रचलित हो गई त्ब शिक्षित वग ने उसे व्याकरण करे नियमो मे बोधकर साहित्योपयोगी बन्‌, दिया । जैसे विद्धानो ने पराकृत भाषा के लिए पारिनि के समान ही सूत्र- बद्ध व्याकरण तयार कर दिया । उस समय का जेन-साहित्य और बौद्ध- साहित्य इसी प्राकृत भाषा मे ही लिखा गया । पाली या प्रथम प्राकृत के ' लिक्षित वगे की भाषा होने पर तत्कालीन बोल-चाल की भाषा ने जन- मन मे स्थान बनाया, यह्‌ (दूसरी प्राकृत' कहलाई । यह्‌ प्राकृत भाषा भी उस समय चार भागो मे विभक्त थी--महाराष्टी, शौरसेनी, मागधी भ्रौर ्रधमागधी । जब दूसरी प्राकृत का विकास अपनी चरम सीमा को पहुँच गया तो वह भी केवल शिक्षित समुदाय की भाषा बन गई। सर्वसाधारण की




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