मोक्षशास्त्र प्रवचन [ भाग 13 से 18] | Moksha - Shatra Pravchan (Bhag - 13 To 18)

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Moksha - Shatra Pravchan (Bhag - 13 To 18) by श्री मत्सहजानन्द - Shri Matsahajanand

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १३ ) मानो यह्‌ कोई वडौ अच्छी जगह होगी । जैसे एक बार एक साधु जो घर-घर मे शिक्षा वृत्ति लेते थे स्वानकबातों साधु थे जिसने खुद घटना सुनायी कि एक साधु भिक्षा लेने गया तो वहाँ घर को स्त्री ते मना कर दिया कि अभी हम काम कर रही हैं भिक्षा देने को हमे फुरसत नहीं है, कही दूसरी जगह जाओ | तो उस सम्रय उस साधु को कुछ गुस्सासा आया ओर कह उठा कि धरे तू तो रल प्रभा जाएगी । यह वेचारी नासमझ स्त्रो कुछ न समझो लेकिन रत्त प्रमा ताम सुनकर उसे समज्ञा कि बह तो कोई अच्छी जगह होगी, सो बोली-महाराज हमारा ऐसा भाग्य कहाँ है कि हम रलप्रभा जाये, वहाँ तो आप हो जैसे भाग्यशाली जा सकते हैं। अब रत््तप्रभा वाम तो है पहले वरक का, सो वह साधु वडा शमिन्दा हुआ उस स्त्री का जवाब सुनकऋर। तो जो ७ नरको के ताम लिए गएवे विल्कुत सम्हल हुए নাম हैं, भूमियों की सख्या ७ बतायी गई है, अगर इन भूमियों का कोई सक्ष प करता चाहे तो कह दो कि एक ही है क्योकि करकन्तरक सब एक प्रकार के कहलाते हैं भौर कोई इतका विस्तार बनाना चाहे तो प्रत्येक तरक में उत्तम मध्यम जघन्य विभाग है। लेश्यावा की अपेक्षा, आय्‌ कौ अपेक्षा सभी इष्टयो से उनके तीन-तीन विभाग नरको मे रहने वाते नार- कियो के शरीर की अवगाहुना भी भिन्‍न-भिन्‍न प्रकारहै तो यो कह सकते कि २१ नरक है पर त सक्ष प्‌ रखा, न विस्तार रखा ऐसी सख्या यहाँ ७ बतायी गई है। नरक भूमियों की दु रूपता --ये भूमिँ देसी दु समयी ह करि जिनका स्पश होते ही हजार विच्छुओ के द्वारा डसे जाने जितनी वेदना हुआ करती है, अथवा जैसे किसी कमरे मे फर्श पर विजली का करेन्ट आ जाए तो उसके छने से कष्ट होता है ऐसे ही करेच्ट जैसी नरको की सारी भूमि है। वहाँ कौन सा स्थान छोडकर जाये ? पर एक बात भी अनहोनी देखी जाती कि उन बरक की भूमियों में कोई असुरकुमार नाम के देव दयावश नारकियों को समझाने भा जावे, या उन्हे भिडाने आ जावे तो उन देवो को वह भूमि दु खदायी नहीं बतती। तो ठोक है, ये सब कर्म के भेद बोले है ।'यहाँ भी तो कोई अगर रबड़ की चप्पलें पहने हो या काठका खडाऊ पहने हो तो उत्त पर बिजली के ইন का असर नही होता, और लोगो के करेन्ट का असर हो जाता। तो उत्त भूमियों मे भी कैसी ऐसी विचित्रता है कि नारकियों के लिए तो वह करेन्‍्ट का जैसा काम करती है और देवो के लिए किप्ी प्रकार के दु ख का कारण नही बनती | तो जिनके पाप का उदय है उनके लिए यह सब दुःख की सामग्री वन जाया करती है। ऐसी भूमि ही क्या, प्राकृतिक दु ख के सारे साधन वहां हैं। बहा वृक्षों के जो पत्ते गिरते वे भी तेज धार वाले होते हैं। कोई तारकी यदि किसी पेड की छाया में आराम करने पहुँच जाये तो उस पैड के पत्तो के गिएने से उसका शरीर छिंद जाता। उन नारकी देवो का वह वैक्षियक शरीर तिल-तिल बराबर खण्ड हो जावे पर भी पारे की तरह जुड़ जाता है, यही प्रक्रिया उनकी हरदम चलती रहती है। उनकी बीच में मृत्यु नहों होती। तो इस तरह इन ७ भूमियों का सर्वप्रथम विवरण बताया गया। জাত भूमियो का विइलेषण--ये ७ भूमियाँ वरफो के आकार वानी छहो दिशाओं में एक समान समान भाग को लिए हुए हैं। इतकी दिशाओं मे और नीचे घनो वायु है। जो स्थिर वायु है, जिस पर यह भूमि सधी हुई है, यह भूमि श्रमण नहीं करतो किन्तु सदा स्थिर रहती है किन्तु जैने लोगो को प्रतीति है कि सूये, चद्ध नक्षत्र दिखते हुये नजर आते हैं, ये मेरू पर्वत की प्रदक्षिणा करते है भर मानों इसीलिए प्रदक्षिणा करते हो कि मेरू परवंत का स्थात पवित्र मादा गया है। तोर्थकरो




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