निबंध - निचय | Nibandh - Nichay

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Nibandh - Nichay by जगन्नाथ प्रसाद - Jagannath Prasad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हिंदी की वर्तमान अवस्था १५ अपनी पुस्तकों में, चाहे जिस कारण से हो, हिंदी को बहुधा स्थान देते हैं । इस काम में वे हिंदी-माषा-माषियों से सहायता नहीं छेते। वे स्वयं हिंदी लिखकर प्रसन्न होते, कहते हैं कि आमी वेश ददी दिखी अर्थात्‌ मैं अच्छी हिंदी लिखता हूँ। थे गय ही नहीं, पद्य भी लिखते हैं । नमूने के छिये एक गीत नीचे उद्धुत किए देता हूँ। यह ऐसे-बैसे आदमी का नहीं, बंगाछ के “'नठबुछ-चूडामणि! स्वयं बाबू गिरीशचंद्र घोष का चनाया है| वह गीत सुनिए-- भ्राम रहीम ना जूदा करे, दिर को सचा रखी जी; हाँ जि, हो जि करते रहो, दुनियादारी देखो. जी॥ जब येका तब ठेसा देये, शदः मगन में रहेना जौ; शड्धि में মং অহন बनि दय, কৃত दर दम रहना औ९ जब तक सेको फरक रहो भर, इस इस काम में माना जी; केया जाने कब दम ভুলো, स्का नेदि ठिकाना जो) दुश्मन तेण सपय ररित, दैखे माई, सब उसको जौ;




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