विचित्र वीर | Vichitra Veer

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Vichitra Veer by जगन्नाथ प्रसाद - Jagannath Prasad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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तीसरा परिच्छेद १३ सवार बना दिए जायँँगे। अच्छा, यह तो बताइए आपके 'यास क्‍या कुछ रुपये भी हैं ९” किंज्योति--फूटी कौडी भी मेरे पास नहीं है। क्‍योंकि किसी खूतिहासमे नहीं पढा कि बहादुर सवार अपने पास रुपये पैसे भी रखते हैं । मठियारा बोला--“आप भूलते हैं। माना कि इतिहासमें ऐसा नहीं लिखा है ! लेकिन इससे यह कैसे माना जाय कि वह नहीं रखते थे। असल बात यह है कि रुपये पैसे ओर साफ कमीज पगैरद् ऐसी जरूरी चीज़ें हैं जिनका रसना अहादुर सवारोंके लिये लाज़मी है । इसीसे तवारीखोमें , इनका ज़िक्र नहीं है। आप यह जानते ही हैं. कि बहादुर सवार अपने साथ अकसर एक मुसाहब ज़रूर रखते थे | झुसाहव न हो तो रुपये से भर एक बढ़ुआ ओर मरहम की एक डवबिया तो जरूर साथ रखते थे ।” किज्योतिने आगे यह सब चीज़े ज़रूर साथ रसने की अतिज्ञा शब्य्र रक्षा का समय हआगया। इसलिये उसने बख्तरके डुकडे होज़्के सिरे पर रख दिए। दाये हाथमे भाला, बाँयें कंधे पर ढाल ले धीरे-धीरे होह़फे आंगे टहलने लगा। ज्यों- ज्यों रात भीगने लगी त्यो-त्यों वह गश्त लगाने लगा । इधर भटठियारेने किज्योतिके पागलपनका हाल सययके व्घ ल्ोगोंसे कद दिया, तो वह लोग भी इस विचिन्न ढेँगके




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