कायाकल्प | Kayakalp

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Kayakalp by ब्रूनो यासेन्स्की - Bruno Yasenski

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मिस्टर कलाक का मास्कों से पहला परिचय गाडी धीर से प्लेटफाम पर आई और खड़ी हो गई। उसके रध रघ्र में लोगो की वाढ फूठ पढी-सभी एक दूसर का पीछे छोड अधाधुध बाहर जाने तरैः रास्ते की तरफ लपक पडे। पहली लहर बे यत्म हो जाने तक वाक खडा रहा, फिर दोनों हाथा मे एक एक सूदोस उठाकर वह आहिस्ता से प्लेटफाम पर उतर गया। बडी घडी में सुबह क॑ दस बज रहे थे। स्टेशन के बाहर वी सीढिया पर पहुचकर उसने सूटकेसों को नीचे धरा, सूटवेसो वा चमडे के चौधियानेवात्रे पीलेपन से सम्मोहित पास ही सहलात फर्डे-पुराने कपड़े पहने एक छोकरे पर वाराज़ी भरी निगाह शली ( उसे भाढी पर ही आगाह किया गया था कि स्टेशना पर भति भाले विदेभियो को बेरहमी के साथ लूटा जाता है) और झोवरकोट वे बटन खालवर एक बदुआ निकाला) कागज की एक परची पर रूसी अक्षरों मे एक होटल का पता लिखा हुआ था। अपने सूटवेसो के पास से बालिश्त भर भी खिसके चिना क्लाक ने इशारे से एक कुली को पास बुलाया, कागज की परची उसके हाथ मे दी और वहा खडी अकेली टेक्सी वी तरफ इशारा किया। लेक्नि इसके पहले कि कुली उसवे झादेश की पूति कर पाता, ज्यादा खशवरस्मत सोगो ने टैक्सी पर कब्जा कर लिया था और मिनट भर बाद ही कुली जब लौटपर आवा, तो वह एक टमदम के पावदान पर खड़ा हुआ था, जिसमे बिलकुल वायतिन जैसा दुबला पतला भूरा घोत्म जुबा हुआ था। कोचवान ने सूदकेसो को ऊपर चढाया झौर थोड़े को एक चाबुक लपाबा। घांड़े ने एक अजीव मा स्वर पैदा कया, झपली অনলী সপ্ন কী हिलाया और दुयामा चाल से चौक के साथ-साथ चलने लगा। १३




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