कायाकल्प | Kaya Kalpa

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Kaya Kalpa by नरेश वेदी - Naresh Vediब्रूनो यासेन्स्की - Bruno Yasenski

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नरेश वेदी - Naresh Vedi

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ब्रूनो यासेन्स्की - Bruno Yasenski

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मिस्टर क्लार्क॑ का मास्को से पहला परिचय गाड़ी घीरे से प्लेटफ़ामं पर श्राई श्रौर खड़ी हो गई। उसके रंघ्रंघ्र से लोगों की बाढ़ फूट पड़ी -सभी एक दूसरे को पीछे छोड़ अ्रंघाघुंघ बाहर जाने के रास्ते की तरफ़ लपक पड़े। पहली लहर के ख़त्म हो जाने तक क्लाकं खड़ा रहा , फिर दोनों हाथों में एक-एक सूटकेस उठाकर वह आआहिस्ता से प्लेटफ़ामं पर उतर गया। बड़ी घड़ी में सुवह के दस बज रहे थे। स्टेशन के वाहर की सीढ़ियों पर पहुंचकर उसने सूटकेसों को नीचे घरा , सूटकेसों के चमड़े के चौंघियानेवाले पीलेपन से सम्मोहित पास ही मंडलाते फटे-पुराने कपड़े पहने एक छोकरे पर नाराज़ी भरी निगाह डाली ( उसे गाड़ी पर ही श्रागाह किया गया था कि स्टेशनों पर भोले-भाले विदेशियों को बेरहमी के साथ लूटा जाता है) श्रौर श्रोवरकोट के वटन खोलकर एक बटुध्ना निकाला । काग़ज़ की एक परची पर रूसी भ्रक्षरों में एक होटल का पता लिखा हुम्रा था। श्रपने सूटकेसों के पास से बालिश्त भर भी खिसके बिना कलाकं ने इशारे से एक कुली को पास बुलाया , काग़ज़ की परची उसके हाथ में दी श्रौर वहां खड़ी श्रकेली टैक्सी की तरफ़ इशारा किया । लेकिन इसके पहले कि कुली उसके श्रादेश की पूततिं कर पाता , उयादा खुशक्तिस्मत लोगों ने टक्‍्सी पर कब्जा कर लिया था श्रौर मिनट भर वाद ही कुली जब लौटकर श्राया , तो वह एक टमटम के पांवदान पर खड़ा हुम्रा था, जिसमें बिलकुल वायलिन जैसा दुवला-पतला भूरा घोड़ा जुता हुम्रान्था। कोचवान ने सूटकेसों को ऊपर चढ़ाया श्रौर घोड़े को एक चावुक लगाया । घोड़े ने एक श्रजीव-सा स्वर पैदा किया , शभ्रपनी पतली गरदन को हिलाया श्रौर दुगामा चाल से चौक के साथ-साथ चलने लगा। १३े




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